कामिनी की वासना
कामिनी की वासना
मैं आप लोगों के सम्मुख एक कामुक स्त्री कामिनी की जीवन गाथा प्रस्तुत करने जा रही हूं।
यह एक ५५ वर्षीय कामुक विधवा की जीवन गाथा है। नाम है कामिनी देवी, एक प्राईवेट फर्म में उप प्रबंधक। चेहरे मोहरे और अपने सुगठित शरीर के कारण वह आज भी ३५ से ४० की लगती है। लंबा कद ५' ७", रंग गेहुंआ, चेहरा लंबोतरा, पतले रसीले गुलाबी होंठ, नशीली आंखें, घने काले कमर से कुछ ऊपर तक खुले बलखाते रेशमी बाल और ३८", ३०", ४०" नाप के अति उत्तेजक खूबसूरत काया की स्वामिनी। देखने वालों की नजरें उसकी कमनीय काया से शरीर से चिपक कर रह जाती, ऐसी है कामिनी। खुले बांहों वाले लो कट ब्लाऊज उसके उबल पड़ते बड़े बड़े उरोजों को बमुश्किल संभाले हुए से लगते हैं। छोटी इतनी कि उरोजों से नीचे करीब पूरा ही दर्शनीय पेट लोगों की नजरों को अनचाहे ही चिपकने को मजबूर करती हैं, उस पर नाभी से करीब दो इंच नीचे बंधी साड़ी तो पूरा आमंत्रण ही देती प्रतीत होती हैं। जब वह चलती तो उसके भारी नितंब कसी हुई तन से चिपकी साड़ी के कारण निहायत ही उत्तेजक अंदाज में थिरकते हैं। उसने अपने आप को सिर्फ आंखें सेंकने की चीज ही नहीं रहने दिया बल्कि कई पुरुषों की अंकशायिनी बन कर अपने कामोत्तेजक तन का स्वाद भी चखा चुकी है। उम्रदराज पुरुषों पर तो शुरु से ही वह खासी मेहरबान रही है। वैसे उसकी उदारता से थोड़ा बहुत प्रसाद चखने का सौभाग्य कुछ भाग्यशाली युवा लोगों को भी मिलता रहा। अपने यौवन का रस पान कराने में कामिनी नें कभी कोई कंजूसी नहीं बरती और वह भी बिना किसी भेद भाव के। इसके लिए जिम्मेदार है खुद उसका अपने तौर पर जीवन जीने का बिंदास तरीका। उसनें अपने जीवन के १७ वसंत पार करने के बाद न कभी किसी के हस्तक्षेप को अपने जीवन में पसंद किया है न ही किसी को इजाजत दी है। स्वतंत्र आजाद खयाल, खुद के बूते अपने पैरों पर खड़ी, अपने मन मरजी की मालकिन।
अपनी आकर्षक और मदमाती कामुक काया का उसने कई मौकों पर बड़ी होशियारी से इस्तेमाल भी किया और अपने कैरियर को संवारा। कैरियर में तरक्की के लिए कुछ कुरूप, बदशक्ल और बेढब बेडौल सीनियर्स की कुत्सित विकृत कामेच्छा की तृप्ती के लिए अपने तन को परोसने में भी कत्तई परहेज नहीं किया।
एक विधवा होने के बावजूद, उसका रहन सहन, पहनावा ओढ़ावा एक बिंदास स्त्री की भांति था। एक वर्ष तक ही तो विवाहिता की जिंदगी जी सकी थी कि एक सड़क हादसे में उनके पति का स्वर्गवास हो गया, जिसके लिए उसकी सास नें उसे ही अपशकुनी मान कर उस पर कहर ढाना शुरू कर दिया था। उसकी तेज तर्रार, बदमिजाज और बदजुबान सास के सामने उसके ससुर और दादा ससुर की एक नहीं चलती थी अत: वे भी अपनी शांति के लिए उसकी सास के किसी बात का विरोध नहीं करते थे हालांकि उनके मन में कामिनी के लिए सहानुभूति थी, मगर उनकी नपुंसक सहानुभूति उसके किस काम की? उसकी सास की तानें और प्रताड़ना जब अति होने लगी तब उसे विद्रोह करने पर मजबूर होना पड़ा और ससुराल से अलग होकर हमेशा के लिएअपने नाना के घर आ गई, जहां उसके नानाजी नें बड़े प्यार से स्वागत किया। उसके अपने माता पिता का घर तो वह कब का छोड़ चुकी थी। १७ साल की उमर से वह नानाजी के यहां ही रह रही थी जहां उसनें पढ़ाई लिखाई पूरी की और वहीं से नानाजी नें उसकी शादी एक सरकारी दफ्तर के क्लर्क से कर दी थी। विधवा होने के बावजूद नानाजी नें उसे न सिर्फ खुशी खुशी अपनाया बल्कि अपने पैरों पर खड़े होने में भरपूर सहायता भी की। आज वह एक सफल प्रबंधक के पद पर अपनी जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम दे रही है।
परिस्थितियों की मारी और उसके जीवन के कई अच्छी बुरी घटनाओं से दो चार होती हुई आज वो इस मुकाम पर खड़ी थी।
अब मैं इससे आगे की कहानी कामिनी के आत्मकथा के रूप में लिखना चाहूंगी अन्यथा मैं कामिनी के भावनाओं और उसके जीवन में हुए अच्छे बुरे घटनाक्रम को, जिन कारणों से आज वह इस मोड़ पर अपने आप को खड़ी पा रही है, असरदार रूप में व्यक्त नहीं कर पाऊंगी।
हां तो मेरे प्रिय पाठकों, मैं कामिनी अब अपने जीवन के उन घटनाओं से आपको रूबरू कराऊंगी जिन के परिणाम स्वरूप आज मैं इस मोड़ पर खड़ी हूं। दरअसल यह कहानी शुरू होती है मेरे पैदा होने के पहले से। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे माता पिता, जो कहने को तो थे पढ़े लिखे और साधन संपन्न, मगर थे दकियानूसी खयालात के, पता चल गया था कि मैं कन्या हूं। उन्हें तो पुत्र रत्न की चाह थी, अत: गर्भपात कराने का हरसंभव उपाय किया गया, मगर मैं ठहरी एक नंबर की ढीठ। सारी कोशिशों के बावजूद एकदम स्वस्थ और शायद उन गर्भपात हेतु दी गई दवाओं का विपरीत असर था कि मैं रोग निरोधक क्षमताओं से लैस पूर्णतय: निरोग व आवश्यकता से कुछ अधिक ही स्वस्थ पैदा हुई। लेकिन चूंकि मैं अपने माता पिता की अवांछित संतान थी, मुझे बचपन से उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। फिर हमारे परिवार में मेरे पैदा होने के २ साल बाद एक बालक का आगमन हुआ और मेरे माता पिता तो लगभग भूल ही गए कि उनकी एक पुत्री भी है। पुत्र रत्न की प्राप्ति से घर में उत्सव का माहौल बन गया। बधाईयों का तांता लग गया और उस माहौल में मैंने खुद को बिल्कुल अकेली, अलग थलग और उपेक्षित पाया।
समय बीतता गया और मैंने अपने आप को विपरीत परिस्थितियों के बावजूद और मजबूत बनाना शुरू कर दिया। मेरे अंदर के आक्रोश नें भी मेरे हौसले को और मजबूती प्रदान की। पढ़ाई में सदा अव्वल रही, खेल कूद में भी कई ट्रॉफियां और उपलब्धियां हासिल की। स्कूल में कुंगफू कराटे की चैंपियन रही। लेकिन मेरे घर वालों नें बधाई देना तो दूर मेरी तमाम उपलब्धियों की ओर कोई तवज्जो तक नहीं दी। इस के विपरीत मेरा भाई, मां बाप के अत्यधिक लाड़ प्यार से बिगड़ता चला गया। आवारा लड़कों की सोहबत में पड़ कर पढ़ाई लिखाई में फिसड्डी रह गया मगर माता पिता उसकी हर गलतियों को नजरअंदाज करते गये, नतीजतन वह बिल्कुल आवारा निखट्टू और मां बाप का बिगड़ैल कपूत बन कर रह गया।
मैंने एक तरह से अपने परिवार के मामलों से अपने आप को अलग कर लिया और अपने तौर पर जीना शुरू कर दिया।
मैंने जिन्दगी के १६ वसंत पार कर लिया और +२ में दाखिला लिया। मेरे अंदर छुपे आक्रोश नें मुझे सदा मेहनत करने और आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। इसी दौरान मेरे साथ एक ऐसी घटना घटी जिसने मेरे जीवन को एक नयी ही दिशा दे दी। एक नये, निहायत ही नये और अभूतपूर्व आनंददायक अनुभव से रूबरू कराया। उस घटना नें मेरी जिन्दगी में एक नया अध्याय खोल दिया। अपनी उपेक्षा का दंश झेलते झेलते मैं आजिज आ चुकी थी, मगर उस घटना के बाद मैंने जिल्लत भरी जिन्दगी में खुशी पाने की राह ढूंढ़ ली, भले ही समाज उसे गलत नजर से देखे मेरे ठेंगे से। आज तक मैंने जो उपेक्षा का दर्द झेला है उससे कई गुना ज्यादा खुशी प्राप्त करने का मार्ग मिल गया और संतोष भी। इससे मेरे अंदर का आक्रोश भी काफी हद तक शांत होता चला गया।
जून का महीना था। हमारी गरमियों की छुट्टियां चल रह थीं। हमारे पड़ोस में चाचाजी के यहां मेरी चचेरी बहन का विवाह था। गांव से काफी सारे रिश्तेदार उसमें शरीक होने के लिए आए हुए थे। उनमें से कुछ लोग हमारे यहां भी ठहरे हुए थे। विवाह के दिन सारे घरवाले मुझे घर में अकेली छोड़ शादी वाले घर चले गए। वैसे भी मुझे इन सब समारोहों में जाने में कोई रुचि नहीं रही थी, क्योंकि लोगों के सामने घर वालों की उपेक्षा का पात्र बनना अब मुझे बहुत बुरा लगता था।
संध्या का समय था,, करीब ६:३० बज रहे थे। सड़क के किनारे की बत्तियां जल चुकी थीं। मैं अपने घर के छत पे अकेली खड़ी सड़क की ओर देख रही थी तभी मेरी नजर सड़क किनारे झाड़ी के पास एक कुतिया और ४ - ५ कुत्तों पर पड़ी। एक कुत्ता जो उनमें अधिक बड़ा और ताकतवर लग रहा था, कुतिया के पास आया और उसके पीछे सूंघने लगा। बाकी कुत्ते चुपचाप देख रहे थे। एक दो मिनट सूंघने के पश्चात वह कुत्ता उस कुतिया के पीछे से उसपर सवार हो गया। मेरी उत्सुकता बढ़ गई और मैं फौरन कमरे से दूरबीन ले आई और उसे फोकस किया और पूरी क्रिया को बिल्कुल सामने से पूरी तन्मयता के साथ अपने आस पास से बेखबर देख रही थी। मैं देख रही थी कि कुत्ते नें कुतिया के कमर को अपने अगले दोनों पैरों से जकड़ लिया था और अपने कमर को जुम्बिश देना शुरु किया। कुत्ते का लाल लाल लपलपाता नुकीला लिंग कुछ देर कुतिया के योनी छिद्र के प्रवेश द्वार के आसपास डोलता रह। फिर कुछ ही पलों में मैने कुत्ते के लिंग को कुतिया की योनी में प्रवेश होते देखा। अब कुत्ता पूरे जोश के साथ अपने कमर को मशीनी अंदाज में आगे पीछे कर रहा था। धक्कों की रफ्तार इतना तेज थी कि मैं अवाक हो कर देखती रह गई। इन सब क्रियाओं में मैंने देखा कि कुतिया नें बिल्कुल भी विरोध नहीं किया, ऐसा लग रहा था मानों यह सब कुतिया की रजामंदी से हो रहा हो और अपने साथ हो रहे इस क्रिया से काफी आनन्दित हो। करीब ५ - ६ मिनट के इस धुआंधार क्रिया के पश्चात वह कुत्ता कुतिया के पीछे से उतरा लेकिन यह क्या! कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी से निकला ही नहीं, ऐसा लग रहा था मानो किसी अग्यात बंधन से बंध फंस चुका था। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए खड़े हुए थे और अपनी पूरी लंबी जीभ बाहर निकाले हांफ रहे थे।
यह सब देखते हुए मेरे अंदर अजीब सी खलबली शुरु हो चुकी थी। मेरी पैंटी में मैंने गीलापन महसूस किया और सलवार का नाड़ा खोलकर हाथ लगा कर देखा तो यह सचमुच भीग चुकी थी। मैंने पैंटी के अंदर हाथ लगाया तो पाया कि मेरी योनी से लसीला चिकना तरल द्रव्य निकल कर पैंटी को गीला कर रहा था। छत के मुंडेर से मेरे गरदन से नीचे का हिस्सा छुपा हुआ था, अत: मैंने हौले से अपनी सलवार उतारी फिर पैंटी भी उतार डाली। अब मेरा निचला हिस्सा पूर्णतय: नग्न था। मैं गरम हो चुकी थी, पूर्णतय: उत्तेजित हो चुकी थी, उत्तेजना के मारे मेरे शरीर पर चींटियां सी रेंगने लगी और मेरा पूरा शरीर में तपने लगा। मेरे लिए यह सब बिल्कुल नया अहसास था। मेरे सीने के अर्धविकसित उभार बिल्कुल तन गये, मेरा दायां हाथ स्वत: ही मेरे उभारों को सहलाने लगे, मर्दन करने लगे और अनायास ही मेरा बांया हाथ मेरी योनी को स्वचालित रूप से स्पर्ष करने लगा, सहलाने लगा और शनै: शनै: उंगली से मेरे भगांकुर को रगड़ने लगा। यह सब करते हुए मैं अत्यंत आनंदित हो रही थी, दूसरी ही दुनिया में पहुंच गयी थी। मेरे अंदर पूरी तरह कामाग्नी की ज्वाला सुलग चुका थी और मैं काम वासना के वशीभूत थी, अपने आस पास की स्थिति से बेखबर दूसरी ही दुनिया में।
करीब ५ मिनट के योनी घर्षण से मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और मेरा सारा शरीर थरथराने लगा, मेरी उंगली लसदार द्रव्य से सन गई और पूरे शरीर में एक तनाव पैदा हुआ और एक चरम आनंद की अनुभूति के साथ निढाल हो गई। मैं छत पर ही धम से बैठ गई। मुझे बाद में पता चला कि यह मेरा प्रथम स्खलन था।
कुछ देर मैं उसी अवस्था में पड़ी रही और फिर खड़ी हो कर दूरबीन संभाला और उन्हीं कुत्तों की ओर देखने लगी। करीब १५ मिनट बाद कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी से बाहर आया, बाप रे बाप ! करीब ८" लंबा और ४" मोटा लाल लाल लपलपाता लिंग नीचे झूल रहा था और उससे टप टप रस टपक रहा था। इतना विशाल लिंग कुतिया नें पड़े आराम से अपनी छोटी सी योनी में समा लिया था। अब दूसरा कुत्ता उस पर चढ़ रहा था, उफ्फ्फ क्या दृश्य था, यह सब इतना उत्तेजक था कि मैं बयां नहीं कर पा रही हूं। दूसरे के बाद जब तीसरा चढ़ने लगा, कुतिया भागना चाहती थी किंतु तीसरे कुत्ते नें भी सफलता पूर्वक अपनी इच्छा पूर्ण की और फिर चौथे नें भी फटाफट उसके साथ वही क्रिया दुहराया। अपने लिंग के धुआंधार प्रहार से कुतिया को अपने लिंगपाश में बांध कर अपनी कामेच्छा शांत की। मैं बुत बनी उस काम क्रीड़ा का दीदार कर रही थी और उस दौरान मैं हस्तमैथुन द्वारा तीन बार स्खलित हुई। उस समय करीब ८ बज रह था।
मैं थरथराते पैरों पर किसी तरह खड़ी हुई कि अचानक मेरे नितंब पर किसी कठोर वस्तु के दबाव का अनुभव हुआ। हड़बड़ा कर ज्योंही मैं पीछे मुड़ी, मैं स्तब्ध रह गई। मेरे पीछे न जाने कब से मेरे दादाजी की उमर के करीब ६५ साल के, ६' लंबे तोंदियल काले कलूटे भैंस जैसे, गंजे, झुर्रीदार चेहरा, खैनी खा खा कर काले किए हुए अपने बड़े बड़े आड़े टेढ़े दांत दिखाते हुए मुंह खोल कर बड़े ही भद्दे तरीके से मुस्कुराते हुए ठीक मेरे करीब पीछे से सट कर खड़े थे और धोती कुर्ते में होने के बावजूद उनकी धोती सामने से तंबू का आकार लिए हुए थी। मैं इन्हें अपने दादाजी के साथ देख चुका थी। ये गांव से दादाजी के साथ ही शादी में शरीक होने आए थे। ये दादाजी के साथ हमारे ही घर में ठहरे हुए थे। जब से ये यहां आए थे किसी शिकारी की तरह उसकी कामलोलुप गिद्द नजरें मेरा सदैव पीछा करती रहती थी। आंखों ही आंखों में मानो मेरे वस्त्र हरण कर मेरी उभरती जवानी का दीदार कर रही हो। मैं नादान जरूर थी मगर इतनी भी नहीं कि किसी की गंदी नजर पढ़ न पाऊं। मैं उससे दूर ही दूर रहती थी।
मगर आज की बात कुछ और ही थी। यह बूढ़ा अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर घर पर ही रुका हुआ था किसी चालाक भेड़िए की तरह मेरा शिकार करने के लिए उपयुक्त मौके के इंतजार में और मैं इस बात से बेखबर अपने आप को अकेली समझने की भूल कर बैठी। यह तो स्पष्ट था कि मेरी सारी हरकतों को काफी समय से छुप कर देख रहा था। जैसे ही अपने मनोनुकूल स्थिति में मुझे देखा, मौका ताड़ कर मेरे करीब आया, इतने करीब कि उनकी धोती के अंदर से उसका तना हुआ कठोर लिंग मेरे गुदाज नितंब के दरार पर दस्तक दे रहा था। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सन्न खड़ी लाज से दोहरी हुई जा रही थी।
फिर ज्यों ही मैं होश में आई, अपने सलवार और पैंटी की ओर झपटी, किंतु उस खड़ूस बुड्ढे नें मुझे बाज की तरह दबोच लिया और बोला, " घबराव ना बबुनी, अब हम से शरमा के का फायदा। हम तोहरा सब कुछ देखली बानी और तू का का करम करत रहले सब कूछ। अईसे भी हमका पता है कि तोहरा मां बाबूजी तोहरा के पसंद ना करेला, मगर हम तोहरा के बहूत पसंद करीला रे बबुनी। तू तो बहुते सुंदरी है रे। तोहरा मां बाबूजी के तो मति मारी गई है जे ऐसन नीक लईकी के ना पसंद करे
हैं ।" कहते कहते उसका बनमानुस जैसा एक हाथ मेरे सीने के उभारों पर जादुई हरकत करने लगा और अपने कामुक स्पर्श से मुझे कमजोर करने लगा, दूसरे हाथ से वह मेरे कमर से नीचे के नाजुक अंगों को सहलाते हुए काम वासना के तारों को छेड़ने लगा। मेरी विरोध करने की कोशिश धीरे धीरे कमजोर पड़ने लगी साथ ही मेरी इच्छा शक्ति भी। मैं कुछ देर उसकी गिरफ्त से छूटने की असफल कोशिश का ढोंग करती रही, ढोंग मैं इस लिए कह रही हूं क्योंकि मुझे भी अब यह सब आनंद प्रदान कर रहा था, वरना अगर मैं चाहती तो उस बुड्ढे की हड्डी पसली तोड़ सकती थी, जैसा कि मैं कुछ लफंगे लड़कों का कर चुका थी। कुछ देर पहले जो बूढ़ा कुरूप बदशक्ल और बेढब लग रहा था, अब उसकी ओछी और अश्लील हरकतें मुझे निहायत आनंददायक लगने लगीं। वह खेला खाया बदमाश बूढ़ा मेरी कामोत्तेजना को भड़का कर मुझे पगलाए जा रहा था, मदहोश कर रहा था और मैं नादान पगली उस कामलोलुप बूढ़े के हाथों हौले हौले समर्पित होती जा रही थी। मेरी अवस्था को भांप कर बुड्ढे की कंजी आंखों में चमक आ गई और गंदी सी मुस्कान उनके होंठों नाचने लगी। उस नें आहिस्ते से अपनी धोती ढीली कर दी, नतीजतन पलक झपकते धोती गिर कर धरती चूमने लगी और फिर मैं नें जीवन भर न भूल सकने वाला वो नजारा देखा कि क्या कहूं।
धोती के अंदर अंडरवियर था ही नहीं, सामने एक भयानक काला नाग फन उठाए सर हिला हिला कर मुझे सलामी दे रहा था। उस विकराल लिंग के चारों ओर लंबे लंबे घने सफेद बाल भरे हुए थे। बुड्ढे नें मेरा हाथ पकड़ कर उस डरावने लिंग पर रख दिया और बहुत ही कामुक अंदाज में मुझसे कहा, " ले बबुनी हमार लांड़ पकड़ के खेल, तोहरा के माजा आई", और मैं गनगना उठी। ७" लंबा और ३" मोटा लिंग मेरे हाथों में था, मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी और मैं मदहोशी के आलम में उस बेलन जैसे जैसे लिंग पर बेसाख्ता हाथ फेरने लगी। कितना गर्म और सख्त।
इधर बूढ़ा मेरी कमीज उतार चुका था, ब्रा खोल चुका था और पूर्णतय: नग्न कर मेरे सीने के उभारों को सहला रहा था, दबा रहा था, मेरी चिकनी योनी में अाहिस्ता आहिस्ता उंगली चला रहा था, मैं पूरी तरह पगला गई थी। पूरी तरह उस बूढ़े के चंगुल में फंस चुकी थी। इस दौरान उन्होंने अपना कुर्ता बनियान भी उतार फेंका था। पूरा शरीर किसी बूढ़े रीछ की तरह सफेद बालों से भरा हुआ था। उन्हें देख कर बूढ़े बनमानुस का आभास हो रहा था।
अचानक बूढ़े नें एक उंगली मेरी योनी में घुसेड़ दी, मैं चिहुंक उठी। "आाााााह, अम्म्मााााा ये ? उंगली निकालिए ना आााााह" मेरे मुख से खोखली आवाज निकली, वस्तुत: मुझे दर्द कम मजा ज्यादा आया।
वह कमीना बूढ़ा किसी अनुभव शिकारी की तरह मुझे जाल में फांस चुका था और बड़े बेसब्रेपन से आनन फानन अब अंतिम प्रहार करने की तैयारी में जुट गया था। उन्होंने अब उंगली मेरी योनी के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया, पहले हौले हौले, फिर धीरे धीरे जैसे जैसे मेरी योनी छिद्र का आकार बढ़ने लगा, उसकी उंगली की रफ्तार बढ़ने लगी।
"आााााह, ओोोोोोह उफ्फ्फ्फ आाााााह " मेरी योनी की संकीर्ण छिद्र के दीवारों पर उनके उंगली का घर्षण अद्भुत आनंद के समुंदर डूबने पर मजबूर कर रहा था, मैं मदहोशी के आलम में सिसकारियां भर रही थी। योनी मार्ग मेरी योनी से रिसते चिकने लसदार रस से सराबोर हो चुका था। वो कामलोलुप बूढ़ा अपने लार टपकते मुख से बोल रहा था, "बस बबुनी बस, अब तोहरा चिकन बुर में हमार लौड़ा ढुकावे का टैम आ गया, अब हम तोहरा बूर के अपन लांड़ से चोदब बबुनी"
मुझ नादान को तो मदहोशी के आलम में कुछ होश ही नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है। पर जो कुछ भी हो रहा था, उफ्फ्फ्फ, बहुत अच्छा लग रहा था, मैं पूरी तरह से उस धूर्त बूढ़े के वश में आ चुकी थी पूर्णरुपेण समर्पित।
अब वो घड़ी आ चुकी थी, गर्म लोहे पर हथौड़े के अंतिम प्रहार का जिसके लिए वो बूढ़ा न जाने कितने जतन से जाल बिछाए बड़े सब्र से इंतजार कर रहा था।मेरा कौमार्य का भोग लगाने का। आनन फानन उस बूढ़े नें छत पर धोती बिछायी, उसी पूर्ण नग्नावस्था में मुझे चित्त लिटा कर मेरे पैरों को अलग किया और मेरी दोनों जंघाओं के बीच अपने आप को स्थापित किया, पहले से गीली मेरे योनी छिद्र के मुख पर अपने विकराल लिंग का सुपाड़ा टिकाया, मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।
"ले बिटिया हमार लौड़ा तोहरा बुर में" कहते ही एक करारा धक्का मारा और मैं चीख पड़ी। "आााााााह " लेकिन वह बूढ़ा तैयार था, उसनें अपने गंदे होंठों से मेरे होंठ बंद कर दिया था। फच्चाक से मेरी गीली चिकनी योनी के संकीर्ण छिद्र को फैलाता हुआ या यों कहिए चीरता हुआ उस कमीने बूढ़े बनमानुष के लिंग का विशाल गोल अग्रभाग प्रविष्ट हो गया। "आााााह" असहनीय दर्द से मेरी आंखों में आंसु आ गए। चंद सेकेंड रुकने के बाद फिर एक धक्का मारा, "ओहहहह मााां मर गईईईई रेेेेेेेेे" बूढ़े नें अपना मुंह मेरे मुंह से हटा कर झट से एक हाथ से मेरा मुह बंद किया और बड़े ही अश्लील लहजे में बोला, "तू चुपचाप शांत रह बबुनी, हम तोके मरे ना देब, तू खाली हमार लौड़े का कमाल देख, अभी ई तोहरा बूर में आधा घूस गईले है। ले एक धक्का और, हुम, अब ई देख कुत्ता मजा आवेगा, हुम,"
"आाााहहहहह," मेरी चीख घुट कर रह गई।
एक और करारा ठाप मार दिया हरामी वहशी जानवर नें।
उफ मांं मेरी आंखें फटी की फटी रह गई।, सांस जैसे रुक सा गया, पूरा लिंग किसी खंजर की तरह मेरी योनी को ककड़ी की तरह चीरता हुआ जड़ तक समा गया था या यों कहिए कि घुप गया था। कुछ पल उसी अवस्था में रुका, मेरा कौमार्य तार तार हो चुका था। बूढ़े नें तो जैसे किला फतह कर लिया था, विजयी भाव से किसी भैंसे की तरह डकारता हुआ हौले से लिंग बाहर निकाला, मुझे पल भर थोड़ा सुकून की सांस लेने का मौका मिला मगर उस तोंदियल खड़ूस वहशी जानवर के मुंह में तो जैसे खून का स्वाद मिल गया था, खून से सना लिंग पूरी ताकत से दुबारा एक ही बार में भच्च से मेरी योनी के अंदर जड़ तक ठोंक दिया।
" देख रे बुरचोदी बिटिया, अब हम तोहरा के हमार लंड से पूरा मजा देब," बोलते बोलते फिर ठोका, अब ठोकने की रफ्तार धीरे धीरे बढ़ाता जा रहा था गंदी गंदी गाली निकाल रहा था,
"आह मेरी रंडी, ओह बुरचोदी, आज तोहरा बुर को भोंसड़ा बना देब,"
मेरे सीने को दबा रहा था, चीप रहा था, निचोड़ रहा था, चूस रहा था,
"चूतमरानी, कुत्ती",
और अब मुझे उसकी इन सब गालियों से, अश्लील हरकतों से, मजा आ रहा था और मुझे अत्यंत रोमांचित कर रहा था। मुझे दर्द की जगह जन्नत का अद्वितीय अनंद मिल रहा था, हर ठाप पर मस्ती से भरती जा रही थी। मैं भी अब बेशरमी पर उतर आई,
" आह बाबा, ओह राजा, आााााााा,हां हाहं, हाय राज्ज्जााााा, आााााह अम्म्मााााा,,,,,," पता नहीं और क्या क्या मेरे मुंह से अनाप शनाप निकल रहा था। मैं भी नीचे से चूतड़ उछाल उछाल कर बेसाख्ता ठाप का जवाब ठाप से देने लगी। नीचे से मेरी कमर चल रही थी, अपनी योनी उछाल रही थी।
मैं समझ गई कि इसे कहते हैं चुदाई और अब मुझे चुदाई का आनंद मिल रहा है। मर्द के लिंग को लंड, लौड़ा या लांड़ कहते हैं और स्त्री की योनी को चूत या बुर कहते हैं। अब मैं बुरचोदी बन गई थी, चूतमरानी बन गई थी,
" चोोोोोोोोोोोद राजाााााााा चोोोोोोोोद,"
मेरे मुंह से भी मस्ती भरी बातों निकल रही थी, मैं पगली की तरह अपने बुर में घपाघप लंड पेलवा रही थी और यह दौर करीब १५ मिनट तक चला कि अचानक मेरा पूरा बदर थरथराने लगा, उधर बूढ़ा भी पूरी रफ्तार और ताकत से मेरी चूत की धमाधम कुटाई किए जा रहा था कि अचानक हम दोनों नें एक दूसरे को कस कर इस तरह जकड़ लिया मानो एक दूसरे में समा ही के दम लेंगे और फिर वह अद्भुत आनंददायक पल, मुझे महसूस होने लगा कि मेरी चूत में गरमा गरम लावा गिर रहा है, मैं भी चरम अनंद में बुड्ढे से चिपक गई, हम दोनों मानो पूरी ताकत से एक दूसरे में आत्मसात हो जाने की जोर आजमाईश में गुत्थमगुत्था थे, छर्र छर्र छरछरा कर मेरा भी स्खलन होने लगा। यह स्थिति करीब १ मिनट तक रहा फिर बूढ़े का विशाल शरीर भी डकारता हुआ निढाल हो गया और इधर मैं भी चरम सुख में आंखें मूंदे निढाल पड़ गई।
"कैसा लगा बिटिया" बूढ़ा पूछ रहा था और मैं बेशरमों की तरह बोल पड़ी, "आाााह मस्त, मेरे प्यारे चोदू बुढ़ऊ " फिर मैं ने खुद ही शरमा कर उनके चौड़े चकले सीने में अपना चेहरा छुपा लिया। बूढ़ा अपनी विजय पर मुस्कुरा उठा और मुझे अपनी बांहों में समेट लिया।
" हमार मेहरारू के मरल दस साल बाद आज पहिला बार कौनो बूर चोदे के मिला बबुनी। इत्ता सुंदर टाईट बूर जिंदगी में पहली बार चोदली बबुनी। मजा आ गईल। तोके भी तो मजा आया ना?" मैं लाज से दोहरी होती हुई उनके चौड़े चकले सीने पर प्यार से सर पटकते हुए अपनी सहमति का प्रदर्शन किया। वह बूढ़ा मेरे इस अंदाज पर निहाल हो उठा।
घर वाले रात भर शादी में व्यस्त रहे और इधर रात भर में चुदक्कड़ बूढ़े नें अपने विशाल लंड से बार बार मुझे अलग अलग तरीके से अच्छी तरह से चोद चोद कर पिछले दस साल की कसर पूरी करने में मशगूल मुझे नादान लड़की से पूर्ण स्त्री और एक स्त्री से छिनाल बनाने पर तुला हुआ था और इस चक्कर में मेरी बूर को पावरोटी की तरह फुला दिया, मेरे सीने के उभारों का ऐसा मर्दन किया कि वह भी नींबू से संतरा बन गए। रात भर में तीन बार हमारे बीच वासना का नंगा तांडव होता रहा, चुदाई की भीषण धींगामुश्ती, रोमांच का अद्भुत सुखदाई खेल तब तक चलता रहा जब तक हम पूरी तरह खल्लास, थक कर चूर निढाल नहीं हो गए। एक ही रात में मैं क्या से क्या बन गई। फिर पूरी तरह उसी स्वर्गीय सुख से तृप्त निर्वस्त्र नंग धड़ंग एकदम जंगली बेशरमों की तरह एक दूसरे से लिपटे हम दोनों छत पर ही सो गए। मेरी दमकती चिकनी काया उस बूढ़े के भालू जैसे शरीर से किसी छिपकिली की तरह चिपकी हुई थी। कितनी बेहया हो गई थी मैं। मेरे अगल बगल मेरे कपड़े छितराए पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मेरे कौमार्य की धज्जियां उड़ाने वाले बूढ़े की धोती मेरे खून से लाल हो चुकी थी।
पौ फटने से पहले ही वह खड़ूस कामपिपाशु बूढ़ा बड़े ही अश्लील और उत्तेजक अंदाज में मेरे नग्न शरीर पर अपनी जादुई उंगलियां फिराते हुए मुझे जगा रहा था,
" अब जाग भी जा हमार प्यारी बुरचोदी बिटिया रानी, सवेरा होवे का है। जल्दी से आपन कपड़े पहिन के नीचे चल और फटाफट तैयार हो जा नहीं तो कौनो के पता चला तो सब गड़बड़ हो जाई।"
मैं ने अनिच्छा से अलसाए अंदाज में अपनी आंखें खोली और यथास्थिति का अवलोकन किया। हाय राम! हम दोनों मादरजात नंग धड़ंग, बूढ़े के बुरी तरह अस्त व्यस्त सिलवटों से भरी और मेरी योनि से निकले रक्त के धब्बों वाली धोती पर पड़े थे और हमारे चारों तरफ ब्रा, पैंटी, सलवार, कमीज छितराए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मैं लाज से पानी पानी हो उठी। वह बूढ़ा निहायत ही कामुक अंदाज में तृप्त और अपनी विजयी मुस्कान लिए मेरे नंगे बदन को वासना से ओत प्रोत नजरों से निहार रहा था। रात की घटनाएं मेरी आंखें के सामने चलचित्र की भांति सजीव हो उठीं। सारा घटनाक्रम इतनी बेशरमी से भरा था जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी। वह बूढ़ा तो कामलोलुप खेला खाया अनुभवी शिकारी था ही, उसके साथ बिताया वह एक ही रात, जिसमें मैं काम वासना के समुद्र में गोता खा कर खुद भी अच्छी खासी बेहया हो चुकी थी। मुझे रतिक्रिया द्वारा अपने अंगों का इस तरह नये और नायाब तरीके से इस्तेमाल करना सिखाने वाले तथा चरम आनंद से रूबरू कराने वाले उस कुरूप, बेढब, कामपिपाशु बूढ़े बनमानुष पर अनायास ही अत्यधिक प्यार उमड़ पड़ा और मैं बेसाख्ता बड़ी ही बेशरमी से उसी नग्नावस्था में उस बूढ़े के नंगे जिस्म से लिपट पड़ी और उसके कुरूप झुर्रीदार चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी लगा बैठी।
किसी पगली दीवानी की तरह मेरे मुंह से, " ओह मेरे बलमा, ओह मेरे प्यारे चोदू बाबा, आई लव यू सो मच" जैसे अल्फाज निकल रहे थे। मैं अबतक इस अद्वितीय आनंद के खजाने से अपरिचित थी। सच में मैं उस अजनबी बूढ़े के इस बहुमूल्य उपहार से निहाल हो चुकी थी।
फिर इससे पहले कि कोई और छत पर आता, हम दोनों अपने कपड़े पहिन फटाफट नीचे उतर आए और नहा धो कर तरोताजा हो गए लेकिन थकान और अनिद्रा के कारण बोझिल मेरी आंखें रात के तूफान की चुगली कर रही थी जिसे मैं ने अपने प्रयासों से किसी पर जाहिर नहीं होने दिया।
अपने यौनांगों से चरम आनंद प्राप्त करने का मार्गदर्शन कराने वाला वह कुरूप व खड़ूस बूढ़ा मेरे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं था। उस रात उसनें मानो मेरे लिए स्वर्ग का द्वार ही खोल दिया। मेरे अर्धविकसित सीने के उभारों (जिन्हें बूढ़े बाबा चूची कह रहे थे) के बेरहमी से मर्दन के कारण मीठा मीठा दर्द का अहसास हो रहा था और थोड़ा सूजा सूजा लग रहा था जिस कारण ब्रा पहनने पर पहले से थोड़ा ज्यादा कसाव का अनुभव कर रही थी। मेरी कमसिन कुवांरी चिकनी नाजुक योनी का आकार (जिसे बाबा चूत और बूर कह रहे थे) बूढ़े केे दानवी विकराल लिंग (लंड या लौड़ा) द्वारा रात भर के रतिक्रिया (चुदाई) में क्रूर प्रहारों के कारण सूज कर थोड़ी बड़ी हो गई थी। मुझे चलने फिरने में थोड़ी तकलीफ हो रही थी। मेरी चूत में मीठा मीठा दर्द हो रहा था। मेरे पूरे शरीर का इस तरह बेरहमी से मर्दन हुआ था कि पूरे शरीर का कस बल निकल गया था और पूरा शरीर टूट रहा था। अपने अंदर मैं जो कुछ भी अनुभव कर रही थी उसे मैं ने किसी पर जाहिर नहीं होने दिया।
एक एक कर सब घरवाले घर आ चुके थे लेकिन सिर्फ औपचारिकता निभाते हुए मेरे माता पिता नें इतना ही पूछा कि मैं रात में ठीक से सोई या नहीं। अब मैं उन्हें क्या बताती कि रात भर में मेरी पूरी दुनिया ही बदल गई है। मैं एक कमसिन कली से पूरी औरत बन चुकी हूं। मैं ने सिर्फ छोटा सा उत्तर दिया, " मैं ठीक हुं।" फिर घर के अन्य कार्यों में व्यस्त हो गई, जैसा कि आम तौर पर मैं करती थी।
दोपहर खा पी कर जब सभी अपने अपने कमरे में आराम कर रहे थे, करीब १ बजे के करीब मेरे कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं थकी मांदी अलसाई, आराम करना चाहती थी किंतु अनिच्छा से दरवाजा खोलना पड़ा। दरवाजे पर वही बूढ़ा खड़ा था और उसके पीछे मेरे दादाजी प्रकट हुए।
"अरे कम्मो बिटिया तू?" दादाजी अवाक् मुझे अविश्वसनीय नजरों से आंखें फाड़कर देख रहे थे। मैं ने भी दादाजी के इस तरह अकस्मात इस अजीबोगरीब हालात में मिलने की कल्पना भी न की थी। एकदम से घबरा गई थी। दादाजी करीब ६० - ६५ की उम्र के करीब ५' १०" ऊंचे कद के बुजुर्ग व्यक्ति थे। पहलवानी छोड़े हुए करीब १० साल हो चुका था किंतु पहलवानों वाला शरीर अब भी वैसा ही था, फर्क सिर्फ इतना हुआ कि कसरत छोड़ने के कारण तोंद निकल आया था। रंग सांवला, चेहरे पर बेतरतीब सफेद दाढ़ी मूंछ, गोल चेहरा, भिंची भिंची आंखें, सर पर सन जैसे सफेद ५०℅ बाल, फिर भी देखने में बूढ़े बाबाजी की तुलना में थोड़े बेहतर थे।
" बबुनी का हमको अंदर आने को ना कहोगी?" वह बूढ़ा उसी कामुक अंदाज में मुस्कुराते हुए पूछ रहा था।
" आईए ना आईए ना" घबराहट में जल्दी से मेरे मुंह से निकला। दादाजी भी बूढ़े के पीछे पीछे कमरे में दाखिल हुए। दादाजी के पैर छूकर उठते वक्त अनायास ही मेरी नजर उनकी धोती की तरफ गई और मैं हतप्रभ रह गई। दोनों जंघाओं के मध्य धोती के अग्रभाग में विशाल तंबू खड़ा था। मैं झट से खड़ी हुई और नजरों दूसरी ओर फेर कर उनसे बैठने को कहा। वो दोनों बूढ़े मेरे बिस्तर पर ही बोहिचक बैठ गए और मुझे भी बिस्तर पर अपने बीच में बिठा लिया।
बूढ़ा बोलने लगा,
" हां तो हम कह रहे हैं कि ई तोहरा दादाजी के सब पता चल गया है ई जो हमरे बीच में कल रात हुआ और ई कहता है कि इत्ता नया माल तू कैसे अकेले अकेले खा लिया। असल में हम दोनों दोस्त आज तक हर माल को मिल बांट के खात बानी। एहे ले हम से रहा नहीं गया अऊर हम इसको सब बात बताए दीए अऊर जईसे ही इसको पता चला, ई हमको बोला साला हरामी अकेले अकेले इत्ता नया माल चोद लिया अऊर हमको बताया तक नहीं। एहीसे ई हमरे साथ तोहरा पास आया है।"
मैं यह सुन कर सन्न रह गई। दादाजी के सामने इतनी बेशर्मी से कहीं गई बातों से लज्जा के मारे मरी जा रही थी। एक तो थकान से मेरा बदन वैसे ही टूट रहा था और ऊपर से यह मुसीबत। मैं घबरा कर बोल उठी, " नहीं नहींबाबाजी मेरे दादाजी के सामने ऐसी बात ना कीजिए प्लीज। दादाजी प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। आप दोनों कृपा करके जाईए और मुझे आराम करने दीजीए। कल रात इसने मेरा जो हाल किया है कि पूछिए ही मत। रात भर में थका कर पूरा शरीर निचोड़ डाला, अभी तक मेरा पूरा शरीर दुख रहा है।"
दर असल मैं डर भी रही थी कि हमारा यह वार्तालाप किसी के कानों में पड़ गया तो मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ेगा।
अबतक चुपचाप बैठे दादाजी की मूक नजरों में मैं ने बूढ़े की तरह कामलोलुपता टपकता देख चुकी थी। उनकी नजरें मेरे वस्त्रों को फ़ाड़ कर मेरे नग्न शरीर के उभारों तथा गुप्तांगों का किसी भूखे भेड़िए की तरह अवलोकन कर रही थी। अनायास उनके मुख से वासनापूर्ण
खरखराहट भरी आवाज निकली, "अर्रे तुमको कुच्छो ना होगा बिटिया, तनि सा हमको भी चोदने दे ना। कसम से तुमको बहुते मजा मिलेगा।" दादाजी के मुख से ये बातें सुन कर मैं लाज से दोहरी हुई जा रही थी। अब दादाजी का असली चेहरा सामने था। उन्हें हमारे रिश्ते से कोई लेना देना नहीं था, उनके लिए तो मैं सिर्फ एक कमसिन, खूबसूरत गुड़िया थी जो बड़ी किस्मत से उनकी हवस मिटाने के लिए उपलब्ध हो गई थी।
दादाजी बोल उठे, " सुन बिटिया, पहले हम तोहरा देह के मालिश कर के सारा थकान उतार देब, फिर तू खुद बोलेगी कि आओ बाबा लोग अब चोद:!"
मैं उनकी यह बात सुन कर घबरा गई। " आप दोनों के सामने? नहीं बाबा नहीं। अकेले अकेले तो फिर भी ठीक है, आप दोनों के सामने? ना बाबा ना, लाज से तो मर ही जाऊंगी। अभी दिन ही दिन में यह सब ठीक है क्या? घर में किसी को पता चल गया तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे।"
"चुप कर बुरचोदी, किसी को पता नहीं चलेगा। सब रात भर के जागल, अभी घोड़ा बेच के सोवत हैं। चल हम दरवाजा बंद करके आवत हैं।" दादाजी अब बेसब्र हो रहे थे। मैं अबतक धीरे धीरे उत्तेजित हो रही थी मगर दोनों कामपिपाशु बूढ़े वहशी जानवरों के बीच परकटी पंछी की तरह फड़फड़ाने का ढोंग कर रही थी। एक नया रोमांच मेरा इंतजार कर रहा था। दो दो बूढ़ों से चुदने की कल्पना मात्र से ही मेरी चूत गीली होने लगी। फिर भी मैं ना ना करती रही।
" प्लीज दादाजी मेरे साथ ऐसा मत कीजिए ना, मैं तो मर ही जाऊंगी।"
मगर वहां मेरी सुनने वाला कौन था। दोनों ने मिल कर आनन फानन में मेरे शरीर को कपड़ों से मुक्त कर दिया। दादाजी की तो आंखें फटी की फटी रह गईं। इतनी दपदपाती नंगी कमसिन यौवना को देख कर एक पल के लिए तो उसके होश ही उड़ गए। वह कुछ पल तो अपलक देखते ही रह गए।
"हम कह रहे थे ना, मस्त माल है। अब देखत का है, शुरू हो जा" बूढ़े के लार टपकते मुख से बोल फूटे।
तब जैसे उसे होश आया और किसी वर्षों से भूखे भेड़िए की तरह मुझ पर टूट पड़े। मेरे होंठों को दनादन चूमने लगे, होंठों को चूसने लगे, मेरे मुंह में अपनी मोटी लंबी जिह्वा डाल कर मेरे मुंह के अंदर चुभलाने लगे। उनके दाढ़ी मूंछ मेरे चेहरे पर गड़ रहे थे लेकिन मैं सहन करने को मजबूर थी क्योंकि अब धीरे धीरे मैं भी उत्तेजित हो रही थी और मदहोशी के आलम में डूबी जा रही थी और मेरे अंदर फिर वही काम वासना की आग सुलगने लगी थी। अपने पहलवानी पंजों से मेरी चूचियों को बेदर्दी से मर्दन करने लगे, मसलने लगे। उनके इस बेसब्रेपन और कामोत्तेजक हरकतों नें मेरे अंदर की अर्द्धजागृत वासना को पूर्णरुपेण भड़का दिया। मैं उनके चंगुल में फंसी चिड़िया की भांति छटपटाने का ढोंग करती रही। लेकिन कब तक।
ज्योंही उसनें मेरे होंठों को अपने होठों से आजाद करके मेरी चूचियों को चूसना चाटना शुरू किया, मेरे मुह से मस्ती भरी आहें फूट पड़ीं।
"आााााह, ओोोोोोोह, उफ्फ्फ्फ, अम्म्मााााा,"
"देखा हम कहते थे ना एकदम मस्त हो जाएगी, देख अब अऊर कित्ता मजा आवेगा।" बाबाजी कह रहे थे और कहते हुए पूर्ण नंगे हो गए। काले कलूटे दानवाकार शरीर और अपने फनफनाते विकराल लंड के साथ बिल्कुल किसी बनमानुष से कम नहीं लग रहे थे। वे बिल्कुल नंग धड़ंग अपने चेहरे पर बेशरमी भरी बेहद अश्लील मुस्कान के साथ खींसे निपोरते हुए मेरे करीब पहुंचे और दादाजी मुझे छोड़ कर फटाफट अपने कपड़े उतारने लगे, इस दौरान बूढ़े नें मोर्चा संभाल लिया और मुझे चूमने लगे, चूची मर्दन करने लगे, फिर मेरी चिकनी बुर की तरफ मुंह करके सीधे बुर को चूसना चाटना शुरू कर दिया। मेरी उत्तेजना अब चरम पर थी और बेसाख्ता मेरे मुंह से "आह उह उफआााा" की आवाजें उबल रही थीं। बूढ़े का विकराल लंड ठीक मेरे होंठों के ऊपर झूल रहा था। इतने सामने से उनके दानवाकार शानदार लंड का दीदार करने का पहला मौका था।
" चल हमार लंडरानी बिटिया, हमार लौड़ा के चूस" बेहद गंदे वहशियाना आवाज में कहते कहते मेरे आह ओह करते खुले होंठों के बीच अपना लंड ठूंस दिया। "उम्म्म्मआााग्घ" आधा लंड एक झटके में भक्क से घुसा कर मेरे मुंह में ही चोदने लगे। मैं पूरी कोशिश कर के भी पूरा लंड मुंह में समा लेने में असमर्थ थी, मगर वह जालिम उधर मेरी चूत चाट चाट कर इतना पागल कर चुका था कि मैं भी उनके लंड को पूरी शक्ति से चप चप कर बदहवास चूसे जा रही थी। बाबाजी मेरी बुर चूसते चाटते गोल गोल नितंबों को बेदर्दी से मसल रहे थे और उस समय मैं चिहुंक उठी जब बाबाजी नें मेरी चूत रस से सने अपनी एक उंगली मेरे संकीर्ण गुदा मार्ग में डाल दिया और अंदर बाहर करने लगे। मैं उनके इस कमीनी गंदी हरकत को रोकना चाहती थी मगर मेरा मुंह उनके लंड से बंद था, मैं कुछ बोलना चाहती थी मगर मेरे मुंह से सिर्फ गों गों की आवाजें ही निकल पा रही थीं। मुझे गुदा मार्ग में उनके उंगली के घर्षण से गुदगुदी हो रही थी। फिर उन्होंने दो उंगली घुसा दी, अब मुझे थोड़ी तकलीफ का अहसास होने लगा किंतु कुछ पलों में वह अहसास तकलीफ की जगह अद्भुत आनंद प्रदान करने लगा। गजब का अहसास था वह। इधर दादाजी हमारी इन हरकतों के मूकदर्शक बुत बने खड़े थे। अचानक बूढ़े नें भक्क से एक करारा ठाप लगाया और पूरा लंड मेरे हलक में उतार दिया और लंड का रस छर छर्र फचफचा कर पिचकारी की तरह छोड़ने लगे और एन वक्त मेरी चूत भी चरमोत्कर्ष की मंजिल पर पहुंच कर छरछरा कर पानी छोड़ने लगी। इसी पल बूढ़े नें अपनी तीन उंगलियां मेरे गुदा मार्ग में प्रवेश करा दिया, मेरा कसा हुआ गुदा मार्ग फैल चुका था और बूढ़ा अपनी तीनों उंगलियों से सटासट मेरी गुदा मैथुन कर रहा था। इधर मैं उनके नमकीन मदनरस हलक में उतारने को मजबूर थी और उधर मेरी चूत से निकलने वाले रस का कतरा कतरा चाट कर बाबा साफ किए दे रहा था।
स्खलित हो कर बाबाजी तो फारिग हो लिए और एक तरफ लुढ़क गये मगर अब तक दादाजी के सब्र का पैमाना भर चुका था। ज्यों ही बूढ़े नें जगह छोड़ी दादाजी किसी भूखे भेड़िए की तरह मुझ पर टूट पड़े। पहली बार मैं ने दादाजी का नंगा पहलवानी शरीर देख कर हत्प्रभ रह गई। उनका लंड बूढ़े के लंड से भी १" लंबा करीब ८" का और उतना ही मोटा करीब ४" का। किसी स्त्री के होश उड़ाने के लिए काफी था और मैं तो एक १७ साल की कमसिन नयी नकोर लड़की, अभी रात को ही तो बूढ़े बाबा के लंड से पहली बार चुद कर चूत की सील तुड़वाई थी। इतना विशाल लंड देख कर मेरी तो रूह फना हो गई।
"ले पकड़ हमर लौड़ा" कहकर सीधे मेरे हाथ में धर दिया।
मैं ने घबरा कर उनका डरावना विकराल लंड छोड़ दिया। "हरामजादी अभी अभी बुढ़ऊ का लौड़ा बड़े आराम से लॉलीपॉप नीयर चूस रही थी और अब हमार बारी आई तो नखरा करे लगली।"
कहते कहते सीधे मेरे ऊपर आया। मेरे पैरों को फैला कर मेरी दोनों जंघाओं के बीच आकर मेरी रस से गीली फिसलन भरी चूत के प्रवेश द्वार में अपने मूसल जैसे लंड के गुलाबी गोलाकार अग्रभाग को टिकाया। मैं दोनों बूढ़ों के बीच फंसी डर और उत्तेजना मिस्रित अवस्था में अपनी चूत की दुर्दशा होते देखने को मजबूर थी। अपना दिल कड़ा करके जबड़ों को कस कर भींच लिया और दादाजी के दानवी लंड का प्रहार झेलने को तत्पर हो गई। अचानक दादाजी नें बगैर किसी पूर्वाभास दिए एक करारा धक्का मारा और एक ही धक्के में मेरे बुर को चीरता हुआ अपना खौफनाक लंड आधा ठोंक दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी मगर उस वहशी दरिंदे नें एक हाथ से मेरा मुंह दबा रखा था ताकि मेरी चीख न निकल पाए। एक पल बाद ही उसनें दूसरा करारा प्रहार किया और अपना पूरा लंड मेरी चूत में पैबस्त कर दिया। मेरी चीख, मेरी आह मेरे हलक में ही घुट कर रह गई। मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई, आंखें फटी की फटी रह गई। मैं छटपटा भी नहीं पा रही थी, उस बूढ़े पहलवान की ऐसी मजबूत गिरफ्त में थी कि हिल भी नहीं पा रही थी, उसपर उस वहशी जानवर के विशाल लंड से फंसी कसमसा रही थी। कुछ पलों तक स्थिर रहकर मेरे होंठों को चूसता रहा, जब मुझे कुछ राहत का अहसास हुआ तो हौले से उसनें लंड बाहर निकाला और फिर एक करारा धक्का दे कर जड़ तक लंड ठोक दिया। इस बार मुझे अपेक्षाकृत कम दर्द का अनुभव हुआ, मेरी चूत को दादा जी अपने लंड के अनुकूल बनाने में कामयाब हो चुके थे और उस चुदक्कड़ बूढ़े के होठों पर विजयी मुस्कान नाच रही थी। फिर जैसे जैसे ठाप पर ठाप पड़ते गये, मेरी चूत फैलती चला गई और दर्द कहां छूमंतर हो गया पता ही नहीं चला, अब दर्द का स्थान अवर्णनीय आनंद ने ले लिया, कामोत्तेजक सिसकारियां मेरे हलक से निकलने लगीं। " आह अम्मा, आह दादा जी, ओह मेरे चोदू राजा, आााााह, ओंोोोोोोह, हां हां हां," और न जाने क्या क्या। दादा जी भी कम हरामी नहीं थे, वे भी बड़बड़ा रहे थे," ले मेरी बुरचोदी, मेरा लौड़ा ले हरामजादी बिटिया चूतमरानी, लंडडरानी प्यारी बबुनी, आज तोहरा बूर के भोंसड़ा बना देब....." और न जाने क्या क्या अनाप शनाप बके जा रहे थे और कस कस के पहलवानी ठाप पर ठाप लगाए जा रहे थे और मैं अानंदातिरेक से पागल हुई जा रही थी, बेशरम छिनाल की तरह, " हां राजा, हां दादू, हां चोदू, हां बलमा, हां मेरे चूत के स्वामी, हां मेरे बुुरचोद सैंया, हां मेरे सरताज, हां मेरे लंडराजा, चोद अपनी बेटी को चोद बेटीचोद" और न जाने क्या क्या बके जा रही थी। अब दादा जी भी पूरे रफ्तार से भकाभक छपाछप मेरी चूत की कुटाई किए जा रहे थे। अचानक मुझे लिए दिए वो पलट गए और मुझे ऊपर कर लिया और खुद नीचे से दनादन चोदे जा रहे थे। फिर अनायास ही पीछे से दो और हाथों में मुझे जकड़ लिया। ये मेरे वही बूढ़े बाबाजी थे। मैं तो उन्हें भूल ही गई थी। मुझे महसूस हुआ कि मेरे गुदा द्वार में उनका लंड दस्तक दे रहा है। मैं चिहुंक उठी मगर दो वहशी जानवरों के बीच सैंडविच बनी असहाय अवस्था में विरोध करने की ताकत भी नहीं थी न ही विरोध करने की इच्छा। जो हो रहा था बेहद रोमांचक और उत्तेजक था। मैं ने उनको अपना पूरा शरीर समर्पित कर दिया और उनके रहमोकरम पर छोड़ दिया। एक ताकतवर धक्के के साथ पहले से ढीली मेरे गुदा मार्ग में बाबा नें अपना विकराल लौड़ा घुसेड़ दिया, "आाााााााााााााह ओोोोोोोोोोह," दर्द और आनंद का वह मिला जुला अहसास। अब मैं समझी कि बूढ़ा क्यों अपनी उंगलियां मेरी गुदा मार्ग में डाल कर संकीर्ण गुदा द्वार को ढीला कर रहा था।
"ले हमार लौड़ा आपन गांड़ में। आाााहहहहह हूंम।" कहते हुए दूसरा ठाप मारा और सरसरा के अपना मूसल मेरे मलद्वार से अंदर अंतड़ियों तक घुसेड़ डाला।
"आााााह मााााा मार डाला रे जालिम जंगली चोदू बुड्ढे।" मेरी चीख मेरे दादाजी के मुंह के अंदर घुट कर रह गई।
"अहा इत्ता मस्त गांड़ जिन्दगी में नहीं चोदल रघु भाई। कईसन चीकन गोल गोल गांड़ है रे तोहार बिटिया। पहले काहे नाहीं तोहरा गांड़ चोदली रे बुरचोदी बबुनी।"
रघु अर्थात राघव सिंह मेरे दादाजी का नाम था, वह बूढ़ा केशव चौधरी, दादाजी उनको केशु कहते थे।
"अरे केशु तू तो गांड़ के रसिया हो, पहले गांड़ काहे नहीं चोदा। पहले ही बुर का उद्घाटन कर दिया।"
" अब का करें, एकर सुन्दर बुर के देख के बर्दाश्ते ना हुआ, सीधे बुरे में लौड़ा पेल दिया। खैर कौनो बात नहीं अब तो एकरा गांड़ मिल गया, अब चोद रहल बानी।"
ये दोनों चुदक्कड़ बूढ़े इसी तरह अश्लील बातें करते हुए मेरे कमसिन नंगे जिस्म के साथ मनमाने ढंग से वासना का नंगा खेल खेल रहे थे और मैं उन वहशी भैंसों के बीच पिसती हुई अपनी इस दुर्दशा में भी अद्भुत आनंद का अनुभव कर रही थी। मेरा बिस्तर मानो कुश्ती का अखाड़ा बन गया हो।
बाबाजी लंड बाहर किए तो पहली बार लगा कि मेरी अंतड़ी भी बाहर आ रही है मगर दादाजी नें अनुभवी शिकारी की तरह अपने थूक से लसेड़ कर लंड डाला था अत: जिस तरह सरसरा कर लंड अंदर गया था उसी तरह सर्र से बाहर भी आया।
फिर क्या था, धकाधक भकाभक मेरी बुर और गांड़ की बेरहमी से कुटाई होने लगी। नीचे से दादाजी ऊपर से वो वहशी बूढ़ा, दोनों नें वह तूफान बरपाया कि मेरे बिस्तर पर धाड़ धाड़ धमाधम धमाचौकड़ी, पूरे कमरे में फचफच की आवाजें,, मेरी " आहहहहह ओहहहहहह उफ्फ्फ्फ हम हंू हाय चोदू नाना हाय रे चोदू दादू ओह बेटी चोदों।" बदमाश बूढ़ा और दादाजी के," हूं हां हूं हां हूं हां बूर चोदी बिटिया रानी, चूतमरानी बबुनी, हमार प्यारी रंडी, ले हमार लौड़ा खा, ले हमार लंड, तोहरा बुर अब से हमार, तोहरा गांड़ में अब ले हमार लांड़ हें हें अह आह हं हं हं" और हम सब का हांफना, सें फों सें फों की अजीब अजीब गंदी अश्लील उत्तेजक आवाजों से पूरा कमरा भर गया। हम तीनों में मानो पागलपन सवार हो गया, हम में मानो अधिकतम आनंद प्राप्त करने की होड़ मची थी, दीन दुनिया से बेखबर जन्नत की सैर में मशगूल थे। मुझे चरम सुख के साथ साथ इस बात की अत्यधिक खुशी भी मिल रही थी कि अंतत: इतने खड़ूस बूढ़ों के विकराल लंडों को एक साथ चूत और गांड़ में आराम से पूरा का पूरा ले कर चुदने में सक्षम हो गई थी और भरपूर मस्ती के सागर में डूब गई थी। इस दौरान मैं एक बार झड़ चुकी थी। मगर उनकी चुदाई जारी थी, फिर दादाजी नें अपने ताकतवर बांहों में भींच कर छर्र से
फचर फचर अपना मदनरस मेरी चूत में भरना शुरू किया। ऐसा लग रह था मानो गरमा गरम लावा पिचकारी की तरह छरछरा के सीधे मेरे अविकसित गर्भाशय में करीब एक मिनट तक भरता रहा और अचानक उनकी पकड़ ढीली हुई और वे पूर्णतय: स्खलित हो कर किसी भैंस की तरह डकार कर निढाल हो गए। मै दादाजी के बंधन से मुक्त हुई मगर बूढ़ा अभी भी मेरी गांड़ कुटाई में व्यस्त मुझसे गुथा हुआ धमाचौकड़ी मचाए हुए था। मैं परमआनंद के चरम पर थी और मेरा दुबारा स्खलन होने लगा और तभी बूढ़े नें पीछे से मेरी चूचियों को कस कर भींच लिया और मेरी गांड़ से चिपक कर मेरी गांड़ के अंदर फचर फचर पिचकारी की तरह अपने मदनरस से सराबोर कर दिया। हम दोनों एक साथ ही स्खलित हुए। बूढ़ा भी दादाजी की तरह भैंसे की तरह डकारते हुए एक तरफ लुढ़क गया। एक तरफ दादाजी का नंग धड़ंग बनमानुष सा शरीर दूसरी तरफ बूढ़े का नंगा बेढब काला दानवी शरीर और बीच में मैं नंगी चुद चुद कर बेहाल मगर चरम सुख प्राप्त पूर्ण संतुष्ट निढाल पड़ी थी। मैं कमसिन कली से औरत और अब इन दोनों कामपिपाशु बूढ़े वहशी जानवरों द्वारा उनकी वहशियाना अंदाज में नुच चुद कर पूरी बेशरम छिनाल बन चुकी थी। दोनों बूढ़े मुझ चोद कर अब आंखें मूंदे निढाल पड़े थे मगर उनके चेहरे पर पूर्ण संतुष्टी की मुस्कान थी। उन दोनों को उनकी मुहमांगी मुराद जो मिल गई थी। उनके लंड जो कुछ मिनट पहले तक शेर बने दहाड़ मार मार कर मेरी चूत और गांड़ का कचूमर निकाला रहे थे, अभी मासूम चूहे की तरह दुबक गए थे।
मैं सचमुच इन बूढ़ों की दीवानी हो गई। मुझे उनपर बेहद प्यार आ रहा था। चोदते समय यही लोग कितने गंदे, बेशरम, बेदर्द थे, जो कि मैं समझती हूं उन पलों की मांग थी, इस वक्त कितने मासूम लग रहे थे। मैं ने प्यार से दोनों के सिरों को सहलाया, अपनी बांहों से अपनी ओर खींच कर चूम लिया और सीने से लगा लिया, वे दोनों भी मासूम बच्चों की तरह मेरे शरीर से चिपक गए। उन्होंने मेरी ओर करवट बदली, दादाजी का बांया हाथ और बूढ़े का दांया हाथ मेरे पीठ के नीचे थे, दादाजी का दांया हाथ और बूढ़े का बांया हाथ मेरे पेट के ऊपर से मेरी कमर को लपेटे हुए आंखें मूंदे मंद मंद संतोष की मुस्कान लिए लेटे हुए थे। मेरी दांयी चूची दादा जी के मुख के पास और बांयी चूची बूढ़े के मुख के पास और मैं चित्त दोनों मादरजात लंगटे बूढ़ों से चिपकी पूरी बेहयाई से लेटी थकान के मारे निढाल पूर्ण तृप्ती के साथ आंखें मूंदे लेटी थी।करीब १५ - २० मिनट बाद मैं ने महसूस किया कि दोनों बूढ़े मेरी चूचियों को धीरे धीरे चूसने लगे, बिल्कुल मासूम बच्चों की तरह जैसे अपनी मां का दूध पी रहे हों। बीच बीच में कहते भी जा रहे थे, "हमार प्यारी माई, हमार मैया,"
मैं बड़े प्यार से उन्हें अपने सीने से लगा कर एक मां की तरह अपनी चूचियां चुसवाने लगी और आनंदित होती रही मगर कुछ ही देर में मेरी चूचियां तन गईं वासना की प्यास फिर जागने लगी, फिर मेरी बूर फकफकाने लगी और दोनों बूढ़े यही तो चाहते थे।
उनके सोए लौड़े फिर फनफना कर चोदने को तैयार हो गये। इस बार उन्होंने आपस में मेरी चूत और गांड़ की अदला बदली करने का फैसला किया था। मैं कहां उनपर ममता बरसा रही थी और कहां ये चुदक्कड़ भेड़िए की तरह मुझे दोबारा भंभोड़ने को बेताब, आव देखा ना ताव, बूढ़ा अपना मूसल लंड लिए मेरी चूत पर टूट पड़ा और अपना लंड पूरा ठेल कर मुझे लिए दिए पलट गया, दादाजी नें जैसे ही मेरी गांड़ को ऊपर उठा पाया, मौके पर चौका जड़ दिया। अपना पूरा ८" का मूसल एक ही झटके में मेरी गांड़ में जड़ तक पेल दिया।"आााााह ओोोोोोोोोोह मांाााााााा," मेरी कराह निकल गई क्योंकि दादाजी का लंड बूढ़े के लंड से काफी लंबा और मोटा था। लेकिन दो तीन ठाप के बाद मेरी गांड़ ऩें उनके लंड को भी स्वीकार कर लिया। " आह मेरी गांड़मरानी बिटिया मां, ओह तोहार गांड़ हमार लौड़ा के चूस रहल बा, हाय रंडी बबुनी, हु हु हु ," दादाजी बड़बड़ा रहे थे। अब फिर वही धमाधम धमा चौकड़ी, उत्तेजक बड़बड़ाहट, हांफना कांपना, धींगामुश्ती, धकमपेल, ठेलमठेल, गुत्थम गुत्थी के तूफानी दौर की पुरावृत्ति। इतने गंदे ढंग से खुल कर बेहद बेशर्मी भरे कामुक अंदाज में हमलोग काम क्रीड़ा में तल्लीन करीब २० मिनट तक आपस में जोर आजमाईश करते रहे, गुत्थमगुत्था होते रहे, चरम सुख के लिए मानों हम लोगों में होड़ मची थी। लग रहा था मानो एक दूसरे में समा ही जाएंगे । अंतत: हम तीनों मानो एक शरीर बन गए हों एेसे गुंथ कर चिपक गए और मेरे आगे पीछे की गुफा में उन बूढ़े कामुक बनमानुषों का लौड़ा रस भरता चला गया।" फिर एक साथ निढाल हो कर आपस में चिपक कर सो गए।
मैं नादान तो उनसे चुद चुद कर निहाल होती गई। मेरे हर उपलब्ध छेद से उन कमीने बूढ़ों नें अपनी काम पिपाशा शांत की और मुझे एक रंडी की तरह चोद चोद कर इतना आनंद प्रदान किया जिसके वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं उनके हवस की गुलाम बन गई, दासी बन गई, रंडी बन गई, चुदाई का खिलौना बन गई और इस बात का मुझे जरा भी मलाल नहीं था क्योंकि यह सब मेरे लिए बहुत ही अनंददायक और चरम सुख प्रदायक था।
करीब ५:३० बजे हमारी नींद खुली। मेरी चूत फूल कर पावरोटी की तरह बाहर उभर आई थी। गांड़ को भी चोद चोद कर कमीनों नें सुजा दिया था। गांड़ का मलद्वार बड़ा हो गया था, मेरी बुर और गुदा में बूढ़ों का मदन रस भरा हुआ था। मुझे बड़े जोर का पोशाब और पैखाना दोनों आ रहा था, झट से उठ कर बाथरूम भागी और मेरी बुर से छरछरा कर पेशाब निकलने लगा और मेरे कमोड पर बैठते न बैठते भरभरा कर भर्र से उनके मदन रस से लिथड़ा मल निकलने लगा। ऐसा लग रहा था मानो मेरे मूत्राशय से पूरा पानी पेशाब के रूप में और पेट का सारा मल खल्लास होकर साफ हो गया। जब मैं टायलेट से बाहर आई तो मेरा पूरा शरीर हल्का हो चुका था। फिर हम तीनों नहा धो कर तरोताजा हो गए। बाकी घरवालों में से किसी को इस बात का आभास तक नहीं हुआ कि हमारे बीच क्या हुआ, आखिर हमारा रिश्ता और हमारी उम्र भी तो इस तरह की थी कि हमारे बीच इस तरह की घृणित अनैतिक यौनक्रीड़ा की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। हमारे घर वालों नें तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अपने ही घर में अपने ही बुजुर्गों के हाथों उन्हीं के नाक के नीचे उनकी बेटी सिर्फ पिछले २४ घंटों के अंदर एक मासूम लड़की से पूरी बेशरम छिनाल औरत बन गई है।
संध्या ६:३० बजे दादाजी नें मां बाबूजी से कहकर दादाजी उस बूढ़े के साथ मुझे बाजार ले गए। हम नें एक टैक्सी में बाजार तक का सफर तय किया। घर से बाजार तक का सफर आधे घंटे का था। मैं दादाजी और बूढ़े के बीच सैंडविच बनी पिछली सीट पर बैठी थी। दोनों मुझसे बिल्कुल चिपक कर बैठे थे। कभी मेरी चूची छू कर मेरे कान में फुसफुसाते, "मां दूध पिलाओ ना" और मैं भी किसी ममतामयी महिला की तरह बनावटी गुस्से से फुसफुसा कर डांटती, "चुप शैतान"। कभी मेरी गुदाज जंघाओं को सहलाते हुए कहते, " मां मुझे गोद में ले लो ना" और मैं बड़े ठसके में मादक अदा से उनके गाल पर हलके से चपत लगाती और कहती, " बदमाश कहीं के, इतने बड़े होकर भी मां की गोद में बैठोगे? चुप बैठो।" हमारे बीच एक अंतरंग नजदीकी रिश्ता कायम हो चुका था। मुझे उनकी चुहलबाजियों से मजा आ रहा था और साथ ही साथ उन पर बड़ा लाड़ आ रहा था। कभी मेरे हाथ अपने खड़े लंड पर रख देते और कहते, " मां यहां देख ना यहां क्या हो गया है?" और मैं झिड़कते हुए कहती, " बेशरम, अब बदमाशी करोगे तो मुझसे पिटोगे।" और उनके कान खींचती। हम इस बात से बेखबर थे कि करीब 50 - 55 साल का वह काला कलूटा, दुबला पतला, लंबोतरा चेहरा और लंबी तोते जैसी नाक, बेतरतीब बाल और लंबी सफेद दाढ़ी वाला बूढ़ा टैक्सी ड्राईवर आईने में हमारी हरकतों को देख देख कर मुस्कुरा रहा था और हम इसी तरह चुहलबाजी करते बाजार पहुंचे । टैक्सी से उतरते समय उस ड्राईवर से रहा नहीं गया और फटे बांस सी आवाज में बोल बैठा, " बहुत भाग्यवान हैं आपलोग, काश मेरी भी कोई ऐसी बिटिया होती।" हाय मैं तो शरम से पानी पानी हो गई। दादाजी मुस्कुरा कर बोले, " यह हमारी बिटिया नहीं मां है मां।" मैं समझ रही थी और मेरे रसिया बूढ़े भी समझ रहे थे कि मैं उनकी किस तरह की मां हूं, मां या माल। फिर टैक्सी भाड़ा देने के लिए पैसे निकालने लगे। मैंने टैक्सी ड्राईवर की आंखों में अपने लिए हवस भरी कातर याचना को पढ़ लिया। मैं रोमांचित हो गयी, समझ गयी कि मुझ जैसी लड़की के लिए दुनिया में ऐसे हवश के पुजारी खड़ूसों की कमी नहीं है। बस जरूरत है तो बुद्धिमानीपूर्वक उनकी इस कमजोरी का इस्तेमाल बड़ी चतुराई से अपने यौवन का आनंद प्राप्त किया जाय। मैं उसकी लार टपकाती कातर याचना भरी निगाहों से, जो कि मेरे वस्त्रों को भेदती हुई मेरे तन के प्रत्येक उठान और गहराईयों में चिपकी हुई टटोल रही थी, रोमांचित भी हुई और उसकी याचनापूर्ण निगाहों से द्रवित भी। आंखों के इशारे से उसे आश्वस्त किया कि मैं नें उसकी याचना को समझ लिया है और जल्द ही हमारी "मुलाकात" होने वाली है। चुपके से एक पुर्जी पर मेरा नंबर लिख कर उसकी ओर उछाल दिया।
फिर हमलोग शॉपिंग मॉल में गए और दादाजी नें अपने पसंद से मेरे लिए नये कपड़े पसंद खरीदा। मैंने बताया कि मेरी चूचियां सूज कर थोड़ी बड़ी हो गयी हैं इस लिए एक साईज बड़ा ब्रा खरीदवाया। मैंने भी बूढ़े और दादाजी के लिए मेरी पसंद के अऩुसार कपड़े खरीदने को मजबूर किया। ढंग के शर्ट और पतलून, उन्हें पहना कर ट्राई किया और जो कपड़े उनपर फब रहे थे वही खरीदवाया। उनके बाल और दाढ़ी करीने से सेट करवाया। उनके लिए टूथब्रश खरीदवाया और कहा कि अब से रोज सुबह शाम ब्रश करें नहीं तो मैं उन्हें अपने पास भी आने नही दूंगी। अच्छी क्वालिटी का बॉडी स्प्रे खरीदवाया। मैं उनका कायाकल्प कर देना चाहती थी। दोनों बूढ़े आज्ञाकारी बच्चों की तरह मेरी हर हर बात मान रहे थे।
तब मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब दो घंटे बाद हम शौपिंग कर के बाहर निकले, वह बूढ़ा टैक्सी वाला वहीं हमारा इंतजार करता मिला। बूढ़े टैक्सी वाले नें आग्रह पूर्वक अपनी ही टैक्सी में घर तक छोड़ने की पेशकश की और मेरे दादाजी कह उठे, "का बात है रे? इत्ती देर से हमरा ही इंतजार कर रहे थे का?"
वह टैक्सी वाला बूढ़ा झेंपता हुआ बोला, "हां बाबूजी, आईए ना"
फिर हम उसी टैक्सी से घर वापस आ गये। दादाजी भाड़ा देने लगे तो टैक्सी वाला बूढ़ा भाड़ा देने से मना कर दिया और बोला, " काहे शर्मिंदा कर रहे हैं साहब, आप लोगों की मां मेरी भी मां (माल) समान है। आप लोगों से क्या भाड़ा लेना। कभी भी जरूरत पड़े मुझे याद कर लीजिएगा, मैं हाज़िर हो जाऊंगा।" कहते हुए उसकी बड़ी हसरत भरी निगाहें मेरे यौवन पर चिपकी हुई थी। मैं ने हौले से उसके आमंत्रण भरी निगाहों के प्रत्युत्तर में मेरे बूढ़े आशिकों की नजर बचा कर हल्की मुस्कान के साथ मूक स्वीकृति जता दी। ड्राईवर का तो खुशी से चेहरा खिल उठा। उसके पास वैसे भी मेरा नंबर पहुंच चुका था।
फिर हम लोग जैसे ही घर में प्रविष्ट हुए, सब भौंचक आंखें फाड़े हमें देख रहे थे। मेरे बूढ़े आशिकों का कायाकल्पित रूप देख कर सब घरवाले चकित भी थे और प्रसन्न भी। मेरे नानाजी तो बेसाख्ता बोल उठे, "वाह समधी जी, ई तो कमाल हो गया। एकदम से स्मार्ट लग रहे हो।"
"अरे सब ई हमरी बिटिया का करा धरा है।" दादाजी झेंपते हुए कह उठे। फिर नानाजी मेरी ओर मुखातिब हुए और बोले, "वाह री जादुगरनी।" बूढ़े आशिकों के अभूतपूर्व आनंदमय कृत्य का रसास्वादन कर मेरे निखरे स्वरूप पर बुलडोग जैसी सूरत वाले नानाजी की निगाहें टिक गयीं। उनकी निगाहों में मैं ने जो कुछ देखा उसमें मुझे अपने लिए प्रशंसा मिस्रित भूख स्पष्ट लक्षित हो रही थी। मैं पल भर के लिए हत्प्रभ रह गई थी, दादाजी की बातों से मेरा ध्यान भंग हुआ,
"अरे समधी जी, अब बिटिया पर ही नजरें गड़ाए खड़े रहोगे क्या? चल अंदर," बोलते हुए नानाजी की बांह पकड़ कर उसे दूसरे बूढ़े के साथ उस कमरे में गये जहां ये ठहरे हुए थे। मैं तुरंत अपने कमरे में आई और बेड पर पसर गयी। मेरे जेहन में नानाजी और टैक्सी ड्राइवर का चेहरा बार बार कौंध रहा था। दोनों की नजरों में क्या फर्क था? मुझ अव्यस्क कली से अपनी हवस मिटाने वाले दादाजी और उनके बूढ़े सहयोगी, जो कि दूर के रिश्ते में दादाजी के बड़े भाई, अर्थात मेरे बड़े दादाजी से भिन्न तो कत्तई नहीं थे।
नानाजी 62 साल के ठिंगने, करीब 5' के भैंस जैसे मोटू तोंदियल, गंजे व्यक्तित्व के स्वामी थे। भरे भरे गोल बुलडोग जैसे चेहरे में छोटी छोटी मिची मिची आंखें और पकौड़े जैसी नाक, चौड़ा बड़ा सा मुंह और मोटे मोटे होंठ बाहर की ओर थूंथने की तरह उभरे हुए, बड़े बड़े कानों पर लंबे लंबे सफेद बाल, कुल मिलाकर निहायत ही अनाकर्षक और भोंड़े। नानाजी पिछले 7 साल से विधुर की जिंदगी जी रहे थे। मेरी मां के अलावा दो और शादीशुदा बेटियां थीं, जिनकी विदाई के बाद गांव में अकेले ही मजदूरों के भरोसे खेती बारी का काम देखते थे। बड़ी सी हवेली में अकेले नौकरों के भरोसे रह रहे थे। और 2 दिन बाद उनको गांव लौटना था।
ड्राईवर और नानाजी और उनकी भेदती नज़रें बार बार मेरे जेहन में अनचाहे पैठ बनाती जा रही थी। मैं हैरान थी कि यह मुझे हो क्या रहा है। आगे और मैं क्या कर बैठूंगी या मेरी नियति क्या है, इन बातों से बेखबर कब मेरी आंख लगी मुझे पता नहीं।
करीब एक घंटे पसर कर सोई और जब आंख खुली तो देखा 8 बज रहे थे।
जब मैं कमरे से बाहर निकली, देखा कि नानाजी के साथ दोनों बूढ़े ड्राइंग हाल के कोने वाले सोफे पर बैठ कर न जाने क्या खुसर पुसर कर रहे थे। ज्यों ही उनकी नजर मुझ पर पड़ी, चुप हो गये और मुस्कुराने लगे। नानाजी की नजरों में मैं अपने लिए वही परिचित हवस की भूख से लार टपकती स्पष्ट देख रही थी। मैं समझ गयी कि दादाजी और बड़े दादाजी ने नानाजी को भी हमारे बीच हुए गरमागरम कामक्रीड़ा का राजदार बना लिया है। नानाजी की गंदी हवस भरी कामलोलुप दृष्टि को देख मैं सहम गई।
इतने में "चल बिटिया बाहर बगीचे में थोड़ा टहल लिया जाय।" कहते हुए दादाजी खड़े हुए और साथ ही दोनों बूढ़े भी और मैं असमंजस में उनके साथ खिंची बाहर बगीचे में आ गयी। पहले दादाजी आश्वस्त हुए कि यहां एकांत है, फिर एक किनारे बेंच पर बैठे और मुझे भी हाथ पकड़ कर अपने और नानाजी के बीच बैठा लिया, एक किनारे बड़े दादाजी बैठे थे। मेरे करीब आ कर धीरे से बोले, " बिटिया, आज तोहरा नानाजी पर भी थोड़ा मेहरबानी कर दे। आपन जोबन के रस तनी सा चखा दे। बेचारा बहुत दिन से भूखा है।" मैं गनगना उठी। क्या उत्तर दूं समझ नहीं पा रही थी, अवाक रह गयी, इतने नंगे प्रस्ताव पर।
अंततः बमुश्किल बोली, " ना बाबा ना, नानाजी के साथ भी? हाय राम। आप बड़े गंदे हो दादाजी। नानाजी को भी बता दिए।"
"अरे का हुआ?" अब नानाजी के थूथन से बोल फूटा। "हम पर भी तनिक कृपा कर दे ना बिटिया। तुमरा बड़ा अहसान होगा हम पर" एकदम बेचारगी से गिड़गिड़ा उठा।
मैं समझ गई कि मैं फंस चुकी हूं। इनको मना करना मुझे मुश्किल होगा क्योंकि ये सभी हमारे बीच हुए काम वासना के खेल से स्थापित नाजायज अंतरंग सम्बन्ध के राजदार हैं। नानाजी के साथ फिर वही वासना का नंगा नाच नाचने को मजबूर थी, इनकार करने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। मैंने नजरें जमीन पर गड़ा कर डूबती आवाज में कहा, "ठीक है आज रात को जब सब सो जाएंगे, चुपके से मेरे कमरे में आ जाइएगा। मैं दरवाजा अंदर से बंद नहीं रखूंगी।"
मैं नानाजी जैसे भोंड़ी सूरत वाले गंजे, मोटे, तोंदियल, ठिंगने, निहायत ही अनाकर्षक व्यक्ति की हवस मिटाने को मानसिक रूप से अपने को तैयार करने लगी। उद्विग्न मन को बमुश्किल शांत और कड़ा कर के मैं अपने मन को तसल्ली देने लगी कि चलो इस बूढ़े की भी सालों से भूखी कामेच्छा शांत करने को अपना तन परोस कर निपटा दिया जाय, आखिर दो खूसट बूढ़े मेरी कमसिन जवानी का भोग लगा ही चुके हैं, एक और सही। मेरा मन अब भी नानाजी के बेढब रूप और शरीर के साथ कामक्रीड़ा और संभोग की कल्पना मात्र से सिहर रहा था, मगर मैं मजबूर थी। मैं ने एक नजर नानाजी की ओर देखा, वे मुझे एकटक किसी भूखे वहशी भेड़िए की तरह ऐसे घूर रहे थे मानों उनके सामने कोई स्वादिष्ट शिकार बैठी हो। ऐसा लग रहा था मानो उनका वश चलता तो वहीं मुझपर झपट कर भंभोड़ना शुरु कर देते। मैं ने झट से अपनी नजरें हटा ली, धीरे से उठी और भारी कदमों से अपने कमरे का रुख किया।
रात्रि भोजन के दौरान नानाजी से नजरें चुराती रही जबकि नानाजी की वासनापूर्नण नजरें निरंतर मेरे चेहरे और सीने के उभारों पर ही केन्द्रित थीं। मैं तुरंत फुरत खाना खा कर उठ गई और बिना किसी से कुछ बोले अपने कमरे में आ गयी।
"आज इस लड़की को क्या हो गया है? चुपचाप खाना खा कर तुरंत अपने कमरे में चली गई?" मां बोल उठी, "बाजार जा कर खूब घूमे होंगे आप लोग, थक गयी होगी।"
"हां बहु, लगता है बहुत थक गयी होगी बेचारी" दादाजी बोल उठे।
फिर करीब दस बजे सब अपने आपने कमरों में सोने चले गये। इधर मुझसे नींद कोसों दूर थी। मैं धड़कते दिल से बिस्तर पर लेटी नानाजी जैसे बेढब, वीभस्त बूढ़े के साथ होने वाले कामलीला की कल्पना में डूबी, घबराहट से दिल बैठा जा रहा था फिर भी इंतजार कर रही थी। सेकेंड, मिनट, घंटा बीतता गया, अबतक मेरे अंदर घबराहट के साथ साथ रोमांच भी सर उठाने लगा था। मैं सोचने लगी, फंस तो चुकी हूं, चलो अब जो होना है देखा जाएगा। ठीक बारह बजे हल्की सी आवाज से दरवाजा खुला और मैं ने देखा नानाजी दबे पांव प्रवेश कर रहे थे। मैं ने मेन लाईट बन्द कर सिर्फ नाईट बल्ब जला रखी थी। मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और उनकी ओर देखने लगी, मद्धिम रोशनी में भी मैं उनके मोटे होंठों पर वासना से ओत प्रोत मुस्कान स्पष्ट देख सकती थी। आहिस्वे से दरवाजा बंद कर मेरे समीप आए और बड़ी बेताबी से अपनी बाहों में भींच कर बेहताशा चूमने लगे। उनके मुंह से अनजानी बदबूदार महक आ रही थी। जाहिर था कि वह कोई नशा करके मेरे पास आया था।
" हाय राम क्या पी कर आए हैं नानाजी?"" मैं बेसाख्ता बोल उठी और उनकी मजबूत पकड़ में कसमसा उठी, मगर वह मुझे मजबूती से जकड़ कर अपनी मनमानी किए जा रहा था।
"हां री मुनिया, इत्ते साल बाद एक तोहरी जैसी नयी नकोर लड़की से, जो कि हमरी नतनी भी है, ई सब करने के लिए थोड़ा हिम्मत ले के आया हूं, थोड़ा देसी दारू पी लिया हूं" नानाजी बोल उठे।
"छि गंदे, कितनी बदबू आ रही है।" मैं फुसफुसा उठी।
" अब का करें यही दारु मिला। विदेशी दारु इहां तो है नहीं, थोड़ा बर्दाश्त कर ले रानी।" नानाजी धीरे से बोले। उन्होंने मुझे बेदर्दी से दबोच कर पागलों की तरह चूमना चाटना शुरू कर दिया। "ओह नाना आराम से, प्लीज, मैं कहां भागी जा रही हूं।" फुसफुसा रही थी, मेरी स्थिति जाल में फंसी चिड़िया की तरह हो रही थी। वह अपनी जीभ से, जो किसी कुत्ते की तरह लंबी थी, मेरे चेहरे को, गले को चपाचप चाटे जा रहा था। एक हाथ से मुझे जकड़ रखा था और दूसरे हाथ से मेरे अर्धविकसित चूचियों का मर्दन शुरू कर दिया। मैं ने सिर्फ नाईटी पहनी हुई थी, ज्यों ही इसका आभास नानाजी को हुआ, उन्होंने एक झटके में मेरी नाईटी उतार फेंकी और लो, मेरा दपदपाता पूर्ण नग्न यौवन उनके सम्मुख प्रस्तुत था। हाय राम, मैं मारे शर्म के पानी पानी हो रही थी।
उनके लिए यह अद्भुत और अकल्पनीय दृष्य था।
नानाजी अवाक रह गये, नजरें फटी की फटी रह गई, मुंह खुला का खुला रह गया। इतना चिकना, खूबसूरत, कमसिन और कामुक यौवन उनके सामने पड़ा था, उन्हें अपनी नजरों पर और अपनी किस्मत पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
चंद पलों बाद जैसे वे नींद से जागे और किसी भूखे जंगली कुत्ते की तरह टूट पड़ने को बेताब, आनन फानन अपना पजामा, जिसके सम्मुख विशाल तंबू बन चुका था, उतार फेंका और साथ ही अपना कुरता भी। अंदर उसने भी कुछ नहीं पहना था।
हे भगवान, उनका फनफनाता, फुंफकार मारता हुआ काले नाग की तरह लंबा लिंग (लन्ड अथवा लौड़ा) करीब 7" और मोटा करीब 3,", लंबे सफेद बालों से भरा, ऊपर नीचे हो कर मानो मेरे यौवन को सलामी दे रहा था। उनका काला, मोटा तोंदियल विकृत शरीर, गर्दन से नीचे पूरा सन जैसे सफ़ेद बालों से भरा हुआ किसी ठिगने राक्षस से कम नहीं लग रहा था। गजब स्थिति थी मेरी, किंकर्तव्यविमूढ़। मैं जिस स्थिति में थी मना करने की कोई गुंजाइश भी नहीं थी। मैं पूर्णतय: नंगी और वह बूढ़ा दानव भी नंग धड़ंग मुझे झिंझोड़ डालने को बेताब।
फिर तो गजब ही हो गया, अपना गरमागरम (अब मैं भी थोड़ी बेशर्मी भरी भाषा का प्रयोग करूंगी, पाठक गण क्षमा करें) मूसलाकार लौड़ा मेरे हाथों में थमा कर बड़ी बेहयाई से नानाजी बोले, "ले रानी बिटिया हमार लन्ड के पकड़ और आपन मुंह में ले के चूस।" लन्ड क्या था बेलन था, सामने हल्का नुकीला, बीच में मोटा और फिर जड़ की तरफ पतला।
"नहीं नानाजी नहीं, प्लीज इसे मुंह में नहीं," मैं घबराकर बोली।
"चल साली हरामजादी बुरचोदी कुतिया चूस। हमको सब पता है नखरा न कर।" गुर्रा कर नानाजी बोले। फिर जबरदस्ती मेरे मुंह में अपना फनफनाता लन्ड घुसेड़ने लगे। मैं नें अनिच्छा से उनका विकराल लंड प्रवेश के लिए ज्योंहि मुंह खोला, भक्क से नानाजी नें लौड़ा जबरदस्ती मेरे हलक में ठेल दिया। अब वे पूरे वहशी जानवर बन चुके थे और मेरे मुंह से निकलने वाली गों गों की आवाज की परवाह किए बिना एक धक्का और दे कर पूरा लंड मेरे हलक में उतार दिया। मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। फिर धीरे से बाहर निकाल कर भक्क से अंदर ठेला और यह क्रम 5 मिनट तक जारी रखा। पूरे 5 मिनट मेरे मुंह की चुदाई किया और मेरे लार से लसलसे लंड को मुंह से बाहर निकाला। मेरा मुंह दर्द करने लगा था। मैं ने राहत की लंबी सांस ली। मगर हे भगवान! नानाजी का लंड अब पहले से लंबा करीब 9" का हो चुका था और मोटा भी करीब 4" बिल्कुल गधे के लंड जैसा। घबराहट से मेरा बुरा हाल हो गया। "हाय मां इतना बड़ा! मैं मर जाऊंगी नानाजी।" मैं घबराकर बोली।
"तू नहीं मरेगी रे, चुपचाप देखती जा, खूब मज़ा दूंगा रानी।"
अब वह मेरी चुचियों को अपनी लंबी खुरदुरी जीभ से कुत्ते की तरह चाटना शुरू किया। यह अत्यंत रोमांचक था, "आह ओह" मेरे मुंह से निकलने लगा क्योंकि अब मैं भी उत्तेजित हो रही थी। "उफ्फ" उसके चाटने का अंदाज इतना उत्तेजक था कि उत्तेजना के मारे मेरी चूचियां तन गई ं और चूचक उत्तेजक अंदाज में बाहर की ओर खड़ी हो गई थीं। बदन उत्तेजना के मारे थरथरा रहा था। मेरी चूत गीली हो गई थी। चाटते चाटते वह बूढ़ा चूचियों से नीचे पेट फिर नाभी और फिर मेरी चूत तक जा पहुंचा। "ओह मां" अद्भुत अहसास। 5 मिनट की इस क्रिया में मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुंच गयी। जैसे ही मेरी चूत में उनके लंबे खुरदुरे जीभ का स्पर्श हुआ मेरा पूरा शरीर कांपने लगा और मैं छरछरा कर झड़ने लगी। "आआआआह, ऊऊऊऊऊऊऊऊ अम्म्म्म्म्माआआआआ, नानाजी, मैं गई््ई् ््ई्।" फिर मैं निढाल हो गई। अद्भुत आनंद।
मगर नानाजी लगे रहे, पूरे चूत को चाटते रहे, चूत में लंबी जीभ घुसा कर घुमा घुमाकर चाटते रहे। धीरे धीरे मैं फिर उत्तेजित होने लगी और कुछ ही मिनटों में मेरे अंदर फिर कमाग्नि की ज्वाला धधक उठी।
नानाजी ने माहिर खिलाड़ी की तरह मेरी चुदासी स्थिति को भांप लिया और बोले, " चल अब हम तोहार बुर में लौड़ा पेलब, तैयार हो जा।"
मैं ने उनके लंड के स्वागत में झट से पैर फैला दिए यह सोचे बगैर कि इनका दानवी लंड मेरी चूत का क्या हस्र करेगा।
"अईसे नहीं रे बुरचोदी, तू हमरी कुतिया बन जा," कहते हुए मुझे पलट दिया और घुटनों और हाथों के बल चौपाया बना कर किसी कुत्ते की तरह मेरे पीछे आए। मेरी गोल गोल गांड़ से ठीक नीचे अपने गधे लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पर दो तीन पल रगड़ा और फिर मेरी चूत रस से गीली चिकनी फकफकाती बुर के छेद पर टिकाया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के एक करारा प्रहार कर दिया। " ले हमार लौड़ा, हुम्म्म"
मैं अचानक हुए इस हमले से सम्भल नहीं पाई और मुंह के बल बिस्तर पर गिर पड़ी जिससे मेरी गांड़ उठ कर चूत को चुदने के लिए और सहूलियत भरा पोजीशन मुहैया हो गया। "हुम्म्माआह हाय हाय मार डाला नानाजी" नुकीला सुपाड़ा सरसराता हुआ एक झटके में मेरी चूत में अंदर घुसता चला गया और उसके पीछे मोटा हिस्सा भी पूरा का पूरा घुस कर कस गया। मेरे मुंह से आह निकल गई। लंड के बीच का हिस्सा जो अब तक करीब ४" का हो चुका था, मेरी चूत को अपनी सीमा से बाहर फैला कर घुसा था, अतः दर्द से मेरा बुरा हाल हो रहा था। मेरी हालत भांप कर कुछ पल नानाजी रुके। "अहा, मस्त टाईट बूर है रे तुमरा, आह हमर चूतमरानी" ।
मेरी चूत का मुंह उनके लंड के पिछले हिस्से पर कस गया था जो अपेक्षाकृत मोटे हिस्से से काफी पतला था। कुछ पल में ही दर्द छूमंतर हो गया और मैं उनके विकराल लौड़े को आराम से अपनी चूत में समा कर अंद्भुत आनंद का अनुभव कर रही थी। मगर वासना के भूखे वहशी नानाजी की भूख तो और बढ़ गई थी। पीछे से मेरी दोनों चूचियों को कस कस के दबा रहे थे और मुझे बिल्कुल पागलों की तरह उत्तेजित कर रहे थे। एकाएक भच्च से पूरा लंड निकाल कर भक्क से फिर ठोंक दिया। "उफ्फ" दर्द भी आनंद भी। फिर निकाला फिर ठोंका। फिर तो क्रमवत ताल पे ताल धकाधक चोदने लगे। मैं दर्द भूल गयी और उस बदशक्ल बेढब बूढ़े के हाथों पूरी तरह समर्पित हो कर उनके अस्वभाविक गधे लंड से चुदती हुई नवीन रोमांचक अनुभव से दो चार होती हुई वासना के समुंदर में गोते खाने लगी।
"आह राजा, ओह मेरे चोदु नानाजी, मेरे प्यारे चुदक्कड़ स्वामीजी, आह चोद नतनीचोद," और न जाने पागलों की तरह क्या क्या बड़बड़ाने लगी थी।
"हां रे बुर चोदी, हमर प्यारी कुत्ती, देख हम तुम्हरा कुत्ता, तुमको हमेशा अपना कुतिया बनाके चोदेगा। हुम हुम हुम हां हां हां हुम।" वह भी बड़बड़ कर रहा था।
धकाधक ठाप पे ठाप, धमाधम चोदने में मशगूल, कुत्ते की तरह हांफते हुए अंतहीन मशीनी अंदाज में चोदे जा रहा था चोदे जा रहा था और मैं उनके नीचे उनकी कुतिया बनी चुदे जा रही थी चुदे जा रही थी।
मैं फिर एक बार छरछरा के झड़ने लगी, "आआआआआआआआआआह अम्मा ऊऊऊऊऊऊऊऊ गई रे मां मैं गई।"
मगर नानाजी पर तो मानो चुदाई का भूत सवार हो गया था। वह लगा हुआ था धकाधक चोदने में। "ठहर रे तू मेरी बुर चोदी कुतिया, आज तुझे आईसा चोदेंगे कि तू हमेशा के लिए हमरी कुत्ती बन के रहना पसंद करेगी। ले खा हमरा लौड़ा अपना भोंसड़ा में हमरी चूतमरानी। ले हमार लौड़ा ले हरामजादी, हूं हूं और ले।" गंदी गंदी बातें बोले जा रहा था ठरकी बुढ़ऊ।
कुछ उनकी बातों का असर था और मेरी चूत की लगातार हो रही घमासान कुटाई का असर, देखते ही देखते कुछ ही देर में मैं फिर जोश में आ गयी और पीछे की ओर चूतड़ ढकेल ढकेल कर चुदवाने लगी। हमारे हांफने, बड़बड़ाने की आवाज से कमरा भरा हुआ था और बहुत ही कामुक माहौल बना हुआ था।
"हां चोद नतनीचोद हरामजादे, मुझे चोद चोद के अपनी रंडी बना ले मेरी चूत के रसिया, अपनी कुत्ती बना ले मेरे कुत्ते राजा, आह ओह उफ मादरचोद, आआआआह, मेरी बुर की कुटाई करके अपनी लंडरानी बना ले राजा, कूट राजा कूट, अपनी रंडी बना ले रे हरामी, आज से मुझे अपनी दासी बना ले रे मेरे बुढ़ऊ बलमा, आह चोदू, ओह मेरे बूर के मालिक" मैं भी अब उत्तेजना के आवेग में बेहद बेशरम जंगली कुतिया बन कर दादाजी और बड़े दादाजी से सीखी और यहां वहां से सुनी बेहद नंगी गंदी गंदी गालियां मिश्रित बोली बोलने लगी थी।
करीब 45 मिनट चोदने के बाद नानाजी नें अचानक मुझे कस के दबोच लिया, लौड़ा पूरा मेरे अर्धविकसित बच्चेदानी तक घुसेड़ कर छर्र छर्र करके अपनें लौड़े का पानी गिराने लगा और इसी समय मैं भी तीसरी बार झड़ने लगी। "अह ओह हां हां हम्फ" नानाजी के मुख से लंबी लंबी सांसें लेना और कुत्ते की तरह हांफना और मेरा " हाय हाय मैं गयी रे मेरे चोदु बलम, मेरे प्यारे चुदक्कड़ कुत्ते, आआआआह" हम एक दूसरे से गुंथ गये और अनिर्वचनीय संतुष्टि के आनंद से सराबोर 2 मिनट तक वीर्य और चूतरस (अंडे) के मिलन का रोमांच का अनुभव करते रहे। मुझे साफ़ साफ़ अनुभव हो रहा था गरमागरम वीर्य का सीधे मेरी बच्चेदानी में गिरना। मैं चरम सुख प्राप्त कर रही थी और अपने स्त्रीत्व का पूर्ण आनंद भी।
फिर हम निढाल हो कर बिस्तर पर गिर गये, मगर यह क्या! नानाजी का लंड अभी भी मेरी चूत में जड़ तक फंसा हुआ था। मुझे महसूस हो रहा था कि नानाजी का लंड के जड़ के ठीक आगे बड़ी सी गांठ बन कर मेरी चूत के अंदर फंस गयी है। वह गांठ इतनी बड़ी थी कि मेरे चूत के मुंह से बाहर नहीं निकल पा रही थी। लंड निकालने की कोशिश में मैं आगे खिसकने लगी तो मेरी चूत फटने फटने को होने लगी और मैं दर्द से कराह उठी। "ओह मां ये क्या हो गया। मैं तो सच में कुत्ती की तरह तेरे के लंड से बंध गयी।"
"हां रे सच में हमरे में कुत्ता का गुण है। तू इसी तरह पड़ी रह, आधे घंटे में मेरा लौड़ा गांठ छोटा होगा तब लौड़ा बाहर आएगा।" बोलता हुआ आराम से लेटा रहा और इस दौरान अपने वीर्य का कतरा कतरा मेरे गर्भाशय में डाल कर जैसे मेरी चूत को अपने लंड से सील किए हुए था मानो वीर्य का एक बूंद भी बाहर निकल कर बर्बाद न हो पाए। मैं निढाल हो कर बिस्तर पर उनके लंडपाश से बंधी लुढ़की पड़ी रही। करीब आधे घंटे बाद मैं ने महसूस किया कि गांठ छोटा हो रहा है और कुछ ही पलों में फच्च की आवाज से विकराल लंड बाहर निकल पड़ा। मैं ने राहत की लंबी सांस ली, चलो मुक्ति मिली।
मगर आज नानाजी ने अपने लंड का जो जौहर दिखाया, मैं तो सच में उनपर निछावर हो गई। उनका वह कुरुप व्यक्तित्व अब मुझे बहुत प्यारा लगने लगा था। मुझे अपनी काम कला और चोदन क्षमता से संपूर्ण और अकथनीय आनंद का प्रसाद चखा दिया। "वाह रे मेरे चोदु सैंया, आखिर मुझे अपनी कुत्ती बना ही लिया। मैं तेरी दासी बन गई राजा, तेरे लंड की पुजारन।" बोलती हुई उनके बेढब नंगे बदन से लिपट गई और उनके कुरुप चेहरे पर बेसाख्ता चुंबनों की झड़ी लगा बैठी और वह बूढ़ा जो मुझे चोद कर अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ चुका था, पूर्ण संतुष्ट भाव से मुस्कुरा रहा था।
"आज से तू हमारी कुतिया और हम तेरा कुत्ता, ठीक है ना?" नानाजी मुस्कुरा कर बोले और मैं इस बात पर मुस्कान के साथ उनकी छाती पर हौले से सर पटक कर बोली, "हां जी हां मेरे कुत्ते राजा, आज से मैं तेरी कुत्ती हो गई।"
उस समय रात के दो बज रहे थे। मैं ने न चाहते हुए भी नानाजी को समय दिखाया और कहा कि "अब आप यहां से जाईए मेरे प्यारे बुढ़ऊ चोदू लंडराजा" वे बड़ी ही अनिच्छा से उठे और अपने कपड़े पहन कर दबे पांव कमरे से बाहर निकल गये। मैं भी अलसाई सी उठी और थके कदमों से दरवाजे की ओर कदम बढ़ाया कि लड़खड़ा कर गिरते गिरते बची। पांव अभी भी थरथरा रहे थे और मेरी चूत में मीठा मीठा दर्द हो रहा था। मेरी चूत सूज कर कचौरी हो गयी थी। बड़ी मुश्किल से दरवाजे तक गई और दरवाजा बंद कर वापस बिस्तर पर धम से गिर कर पसर गई और थकान के मारे पल भर में नींद के आगोश में चली गई।
रात में दो बजे तक कामपिपाशु नानाजी ने मुझे कुत्ती की तरह चोद चोद कर मेरे तन का पुर्जा पुर्जा ढीला कर दिया था। सुबह करीब 8 बजे मेरी नींद खुली। हड़बड़ा कर उठी और सीधे बाथरूम घुसी। बड़े जोर का पेशाब लग रहा था, चुद चुद कर मेरी चूत का दरवाजा इतना बड़ा हो गया था कि पेशाब रोकने में सफल न हो सकी और टायलेट घुसते घुसते ही भरभरा कर पेशाब की धार बह निकली। नानाजी के विशाल श्वान लौड़े की बेरहम चुदाई से मेरी चूत फूल कर कचौरी की तरह हो गई थी और किसी कुतिया की तरह थोड़ी बाहर की ओर भी उभर आई थी। मेरी अर्धविकसित चूचियां जालिम नानाजी के बनमानुषि पंजों के बेदर्द मर्दन से लाल होकर सूज गई थी। मेरी चूचियों और चूत में मीठा मीठा दर्द उठ रहा था। टायलेट से फारिग हुई और नंग धड़ंग आदमकद आईने के सामने खड़ी हो कर अपने शरीर का बारीकी से मुआयना करने लगी और यह देख कर विस्मित थी कि दो ही दिन में मेरी काया कितनी परिवर्तित हो गई थी, निखरी निखरी और आकर्षक।
"इस लड़की को आखिर हुआ क्या है? इतनी देर तक तो सोती नहीं है। कामिनी उठ, इतनी देर तक कोई सोता है क्या?" मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ और "आती हूं मां," कहती हुई हड़बड़ा कर फ्रेश हो कर बाहर आई।
ड्राइंग हॉल में जैसे ही आई, मैंने देखा कि तीनों बूढ़े एक साथ बैठे हुए आपस में खुसर फुसर कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, चुप हो गये और बड़े ही अजीब सी नजरों से मुझे देखने लगे। उनके होंठों पर मुस्कान खेल रही थी और आंखों पर चमक।
"आओ बिटिया, लगता है रात को ठीक से नींद नहीं आई।" दादाजी रहस्यमयी मुस्कुराहट के साथ बोल उठे।
मैं ने नानाजी की ओर घूर कर देखा और बोली, " नानाजी आप जरा इधर आईए," और बोलते हुए बाहर बगीचे की ओर चली। पीछे-पीछे नानाजी किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह मेरे पास आए।
"क्या हुआ" उन्होंने पूछा।
" क्या बात कर रहे थे आपलोग?" मैं ने गुस्से से पूछा।
"अरे और क्या, ऊ लोग पूछ रहे थे कि रात को का का हुआ?" नानाजी बोले।
" और आपने उन्हें सब कुछ बता दिया, है ना?" मैं नाराजगी से बोल पड़ी।
" हां तो और का करता? पीछे ही पड़ गये थे साले। मुझे बताना ही पड़ा।" नानाजी बोले।
" हाय रे मेरे बेशरम कुत्ते राजा, आप सब बहुत हरामी हो।" मैं बोली। समझ गई कि मैं इन हवस के पुजारी बूढ़ों के चंगुल में फंसकर उनकी साझा भोग्या बन गयी हूं। मैं ने भी हालात से समझौता करने में कोई नुक्सान नहीं देखा, आखिर मैं भी तो उनकी कामुकता भरी कामकेलियों में बेशर्मी भरी भागीदारी निभा कर अभूतपूर्व आनंद से परिचित हुई और अपने अंदर के नारीत्व से रूबरू हुई। अपने स्त्रीत्व के कारण प्राप्त होने वाले संभोग सुख से परिचित हुई।
"ठीक है कोई बात नहीं मेरे कुत्ते राजा, मगर अपनी कुतिया की इज्जत परिवार वालों के सामने कभी उतरने मत देना। यह राज सिर्फ हम चारों के बीच ही रहनी चाहिए, ठीक है ना!" कहते हुए घर की ओर मुड़ी।
" ठीक है हमरी कुतिया रानी, ई बात किसी पांचवे को पता ना चलेगा।" कहते हुए मेरे पीछे पीछे आए और हम साथ नाश्ते की टेबल पर बैठे जहां दोनों बूढ़े, परिवार के बाकी लोगों के साथ बैठे थे। नाश्ते के वक्त पूरे समय तीनों बूढ़े मुस्कुराते मुझे शरारती नज़रों से देख रहे थे। मेरे मन में इन बूढ़ों के प्रति कोई गिला शिकवा नहीं रह गया था बल्कि अपने ऊपर चकित थी कि मुझे उन बूढ़े वासना के पुजारियों पर प्यार क्यों आ रहा था। मैं ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए मम्मी से शिकायत भरे लहजे में कहा "देखो ना मम्मी दादाजी और नानाजी मुझ पर हंस रहे हैं।"
मम्मी हमारे बीच के गुप्त रिश्ते से अनजान इसे नाती पोती नाना दादा के बीच वाली शरारती चुहलबाजी समझ कर मुस्कुरा के सिर्फ इतना ही कहा कि " यह तुम लोगों का आपस का मामला तुम आपस में ही सलटो। मुझे बीच में मत घसीटो।" कह कर उठी और अपने कार्यों में व्यस्त हो गयी। भाई भी उठ कर अपने दोस्तों को साथ मटरगश्ती करने रफूचक्कर हो गया।
पापा बोले, "कल तो इन्हें वापस गांव लौटना है, क्यों नहीं इन्हें आज शहर घुमा देती, इनका भी टाइम पास हो जाएगा।"
"हां ई सही आईडिया है। चल बिटिया हम आज शहर घूम आते हैं।" दादाजी बोल उठे।
"मैं नहीं जाती इनके साथ।" मैं बनावटी गुस्से से बोली।
"अरे चल ना बेटी," अब नानाजी मनुहार करते स्वर में बोले।
"ठीक है लेकिन आप लोग कोई शरारत नहीं कीजियेगा" मैं बोली।
"ठीक है बिटिया ठीक है" सब एक स्वर में बोल उठे।
हमारी नोंकझोंक से पापा मुस्कुरा उठे। फिर हम फटाफट तैयार हो कर बाहर निकले।
मैं निकलने से पहले उसी बूढ़े टैक्सी ड्राइवर को एस एम एस कर चुकी थी, फलस्वरूप वह चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी टैक्सी के साथ हाजिर था। उसकी नजरों में मैं अपने लिए हवस भरी चमक और मूक निवेदन साफ साफ देख रही थी।
"वाह ई तो चमत्कार हो गया। ई तो गजब का संयोग है, हमारे लिए। चल आज हम तेरे ही टैक्सी में पूरा शहर घूमेंगे।" दादाजी बोल उठे।
मैं ने बहुत ही मादक अंदाज में मुस्कुरा कर ड्राईवर को देखा, ड्राईवर बेचारा तो घायल ही हो गया और अपनी सीट पर बैठे बैठे कसमसा उठा। मैं ने उसकी अवस्था भांप ली और मन-ही-मन बूढ़े कद्रदान ड्राईवर को शुक्रिया स्वरूप "तोहफा प्रदान" की योजना बनाने लगी। मुझे पता नहीं क्यों, बुजुर्गों के प्रति आकर्षण बढ़ गया था, अवश्य ही यह पिछले दो दिनों में मेरे साथ हुए तीन बूढ़ों के संग कामुकतापूर्ण अंतरंग संबंधों का असर था।
हम सब टैक्सी में बैठे, सामने बड़े दादाजी और पीछे मैं दादाजी और नानाजी के बीच में बैठी। मेरे बांई ओर नानाजी और दांई ओर दादाजी। मैं ने कहा, "पहले हम म्यूजियम जाएंगे फिर जू और उसके बाद किसी होटल में खाना खाना कर नेशनल पार्क और शाम को बाजार होते हुए घर, ठीक है?"
"ठीक है बिटिया", नानाजी बोल उठे।
फिर हमारा ग्रुप चल पड़ा। जैसे ही टैक्सी चलना शुरू हुआ, नानाजी ने अपना दाहिना हाथ मेरी जांघों पर फिराना चालू किया और मैं गनगना उठी। दादाजी नें मुझको बांये हाथ से अपनी ओर चिपटा लिया और दाहिने हाथ से मेरी चूचियां सहलाने लगे, बीच बीच में दबा भी रहे थे। मैं एकदम गरम हो उठी। मेरी चूचियां तन गईं, मेरी चूत पनिया उठी। मेरे मुंह से हल्की सी आ्आ्आह निकल पड़ी। बड़े दादाजी ने पीछे मुड़कर यह कामुक दृष्य देखा तो वासनात्मक मुस्कान के साथ बोल उठा, "मेरे पीठ पीछे ई का हो रहा है भाई?"
"अरे कुछ नहीं तू आगे देख" नानाजी ने कहा।
उनका हाथ अब मेरी चूत सहला रहा था। मेरी गीली चूत का अहसास उन्हें हो चुका था। मैं भी बेशरम होकर उनके पैंट का जिप खोलकर टनटनाए लंड बाहर निकाल कर सहलाने लगी। मुठियाने लगी। हाय अगर मैं टैक्सी में न होती तो अभी ही चुदवाने लग जाती, इतनी उत्तेजित हो चुकी थी। नानाजी नें मेरा स्कर्ट उठा कर सीधे पैंटी में हाथ डाल दिया और भच्च से एक उंगली मेरी चूत में पेल कर उंगली से ही चोदना चालू कर दिया। "सी सी" कर मेरी सिसकारियां निकलने लगी। मैं ने अपनी दोनों हाथों में एक एक लंड कस कर पकड़ लिया और पागलों की तरह मूठ मारने लगी। उनके मुख से भी दबी दबी सिसकारियां निकलने लगी। हम दीन दुनिया से बेखबर दूसरी ही दुनिया में पहुंच चुके थे। पीछे सीट पर अभी वासना का तूफ़ान चल रहा था कि टैक्सी रुकी और ड्राईवर की आवाज आई, "साहब हम म्यूजियम पहुंच गये।"
हम जैसे अचानक आसमान से धरती पर आ गिरे। हड़बड़ा कर अपने कपड़े दुरुस्त कर मन ही मन ड्राईवर को कोसते हुए टैक्सी से उतरे। ड्राईवर मुझे निगल जाने वाली नजरों से घूरते हुए मुस्कुरा रहा था।
"आप लोग घूम आईए, मैं यहीं पार्किंग में रहूंगा।" ड्राईवर बोला।
मन मसोस कर हम म्यूजियम की ओर बढ़े।
खिसियाये हुए बड़े दादाजी बोले, "साले हरामियों, मुझे सामने बैठाकर पीछे सीट पर मजा ले रहे थे कमीनो। अब मैं पीछे बैठूंगा और मादरचोद तू," दादाजी की ओर देख कर बोले, "आगे बैठेगा।"
"ठीक है ठीक है, गुस्सा मत कर भाई, आज हम तीनों इसे साथ में ही खाएंगे।" दादाजी बोले। मैं उनकी बातों को सुनकर सनसना उठी। तीन बूढ़ों के साथ सामुहिक कामक्रीड़ा, इसकी कल्पना मात्र से ही मेरा शरीर रोमांच से सिहर उठा। फिर भी बनावटी घबराहट से बोली, "तुम तीनों मेरे साथ इकट्ठे? ना बाबा ना, मार ही डालोगे क्या?"
"तू मरेगी नहीं खूब मज़ा करेगी देख लेना" दादाजी बोले।
"ना बाबा ना" मैं बोली।
"चुप मेरी कुतिया, तुमको हम कुछ नहीं होने देंगे। खूब मज़ा मिलेगा।" अब तक चुप नानाजी बोल उठे।
मैं क्या बोलती, मैं तो खुद इस नवीन रोमांचकारी अनुभव से गुजरने के लिए ललायित हो रही थी।
एक घंटा म्यूजियम में बिताने के पश्चात हम जू की ओर चले। करीब आधे घंटे का सफर था मगर इस सफर में दादाजी का स्थान बड़े दादाजी ने लिया और बैठते ना बैठते मुझे दबोच लिया और मेरी चूचियों का मर्दन चालू कर दिया, अपना विकराल लौड़ा मेरे हाथ में थमा दिया और फिर पूरे आधे घंटे के सफर में मेरे साथ वही कामुकता का खुला खेल चलता रहा। मेरे अंदर वासना की ज्वाला भड़क उठी थी। मैं कामोत्तेजना से पागल हुई जा रही थी और एक बार "इस्स्स" करती हुई झड़ भी गई।
खैर मैंने किसी तरह अपने को संयमित किया और जू पहुंचे। हम वहां दो घंटे घूमे। फिर एक रेस्तरां में खाना खा कर करीब 3 बजे वहां के मशहूर पार्क की ओर चले जो वहां से 10 मिनट की दूरी पर था। वहां घूमते हुए ऐसे स्थान में पहुंचे जहां ऊंची-ऊंची घनी झाड़ियां थीं और एकांत था। मैं ने झाड़ियों के बीच एक संकरा रास्ता देखा और उससे हो कर जब गुजरी तो झाड़ियों के बीच साफ सुथरा करीब 150 वर्गफुट का समतल स्थान मिला जो पूरा छोटे नरम घास से किसी कालीन की तरह ढंका हुआ था, जिसके चारों ओर ऊंची ऊंची सघन झाड़ियां थीं। मेरा अनुसरण करते हुए तीनों बुड्ढे उस स्थान पर जैसे ही पहुंचे, वहां का एकांत और खूबसूरत प्राकृतिक बिस्तर देखते ही उनकी आंखों में मेरे लिए वही पूर्वपरिचित हवस नृत्य करने लगा और आनन फानन मुझ पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़े। इस अचानक हुए आक्रमण से मैं धड़ाम से नरम घास से बिछी जमीन पर गिर पड़ी। "आह हरामियों, जरा तो सब्र करो।" मैं गुर्राई।
मगर उन वहशी जानवरों को कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने मुझे दबोच कर फटाफट मेरी स्कर्ट उतार फेंकी, मेरा ब्लाउज, ब्रा, पैंटी सब कुछ और मुझे पूरी तरह मादरजात नंगी कर दिया। मैं जानती थी कि यही उनका अंदाज है, और मैं भी तो इतनी देर से कामोत्तेजना दबा कर इसी बात का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। फिर भी मैं झूठ मूठ की ना ना करती रही और दिखावे का विरोध करती रही और अंततः अपने आप को उनके हवाले कर दिया। उन्होंने अपने कपड़े उतार फेंके और जंगली भालुओं की तरह मुुुझ पर झपटे। अपने अपने फनफनाते विशाल लौड़ों से मुझे चोदने को बेताब इसी खुले आसमान के नीचे। दादाजी ने अपना लंड मेरे मुंह में डाल कर भकाभक मुख मैथुन चालू कर दिया। बड़े दादाजी मेरी चूचियां दबा दबा कर चूसने लगे। नानाजी अपनी लंबी खुरदुरी श्वान जिह्वा से मेरी बुर को चपाचप चाटने लगे। मैं उत्तेजना के चरमोत्कर्ष में चुदने को बुरी तरह तड़प रही थी।
अचानक न जाने कहां से चार बदमाश मुस्टंडे वहां टपक पड़े और सब गुड़ गोबर हो गया। "साले ऐसी जवान लौंडियों को बुड्ढे चोदेंगे तो हम जवान लोग क्या बुड्ढियों को चोदेंगे?" उनका लीडर बोल रहा था। "मारो साले मादरचोद बुड्ढों को, इस मस्त लौंडिया को तो हम चोदेंगे।" सब गुंडे मेरे बूढ़े आशिकों पर टूट पड़े । हमारे इतने रोमांचक कामुकता भरे खेल में खलल पड़ने से मैं बुरी तरह झल्ला गई थी। उसी तरह नंगधड़ंग अवस्था में उठ खड़ी हुई और उन गुंडों पर बरस पड़ी।
"मादरचोदो इन बूढ़ों पर मर्दानगी दिखा रहे हो? दम है तो मुझसे लड़ो।" मैं गुस्से में बोली।
"इस लौंडिया को तो मैं देखता हूं" बोलता हुआ सबसे कम उम्र का लड़का मेरी ओर झपटा। जैसे ही मेरे करीब आया, मेरे पैर का एक करारा किक उसके पेट पर पड़ा, वह दर्द से पेट पकड़कर सामने झुका तो मेरे घुटने का प्रहार उसके थोबड़े पर पड़ा और वह अचेत हो कर पर जमीन पर लंबा हो गया। अब मैं बिल्कुल जंगली बिल्ली बन चुकी थी। उनका हट्टा कट्टा लीडर यह देखकर गाली देता हुआ मेरी ओर बढ़ा, "साली रंडी अभी तुझे बताता हूं। तेरी तो,...." उसकी बाकी बातें मुंह में ही रह गई। मैं ने दहिने हाथ की दो उंगलियां V के आकार में कर के सीधे उसकी दोनों आंखों में भोंक दिया, उतने ही जोर से जितने में उसकी आंखें भी न फूटें और कुछ देर के लिए अंधा भी हो जाए। वह दर्द से कराह उठा, "आ्आ्आह", इससे पहले कि वह सम्भल पाता मेरे मुक्कों और लातों से पल भर में किसी भैंस की तरह डकारता हुआ धराशाई हो कर धूल चाटने लगा। बाकी दोनों लफंगों नें ज्यों ही इधर का नजारा देखा, बूढ़ों को छोड़कर मेरी ओर झपटे। उनकी आंखों में खून उतर आया था। एक के हाथ में बड़ा सा खंजर चमक रहा था। अबतक मैं मासूम कोमलांगिनी से पूरी खूंखार जंगली बिल्ली बन चुकी थी। मेरे बूढ़े आशिक मेरे इस बदले स्वरूप को अचंभित आंखें फाड़कर देख रहे थे।
"साली हरामजादी कुतिया, अभी के अभी यहीं तुझे चीर डालूंगा" कहता हुआ चाकू वाला, चाकू का वार मेरे सीने पर किया मगर मैं नें चपलतापूर्वक एक ओर होकर अपने को बचाया और दाहिने हाथ से उसके चाकू वाले हाथ की कलाई पकड़ कर घुमा दिया। अपनी फौलादी पकड़ के साथ उसके हाथ को इतनी जोर से मरोड़ा कि हाथ मुड़कर पीठ की ओर घूम गया और दर्द के मारे चाकू नीचे गिर पड़ा। दूसरा गुंडा जैसे ही मेरे पास आया, मेरा एक जोरदार किक उसकी छाती पर पड़ा और उसका शरीर भरभरा कर दस फीट दूर जा गिरा। मेरी गिरफ्त में जो गुंडा था उसे मैं ने सामने ठेलाऔर एक लात उसके जांघों के बीच मारा। "आ्आ्आह" करता हुआ दर्द से दोहरा हो गया। फिर तो मैं ने उन्हें सम्भलने का अवसर ही नहीं दिया और अपनी लातों और घूंसों से बेदम कर दिया।
"साले हरामजादे, हराम का माल समझ रखा था, बड़े आए थे चोदने वाले। जा के अपनी मां बहन को चोद मादरचोदो।" गुस्से से मैं पागल हो रही थी। सारा मूड चौपट कर दिया। "मैं नीचे गिरे चाकू को उठा कर चाकूवाले के पास आई और चाकू लहराते हुए बोली, "साले मुझे चीरने चला था। आज मैं तेरा लंड ही काट देती हूं।"
"नहीं मेरी मां, माफ कर दो" गिड़गिड़ा उठा कमीना।
"अच्छा चल नहीं काटती, मगर सजा तो मिलनी ही है। मुझे चोदने चले थे ना, ले मेरी चूत का पानी पी," कहते हुए मैंने एकदम एक बेशरम छिनाल की तरह उस असहाय गुंडे के मुंह के पास अपनी चूत लाई और बेहद बेशर्मी से मूतने लगी। मुझ से पिट कर घायल गुंडे उसी तरह पड़े कराह रहे थे। अब जाकर मेरी खीझ और कामक्रीड़ा में विघ्न से उपजी झुंझलाहट भरा गुस्सा थोड़ा शांत हुआ। मेंरे बूढ़े आशिक उसी नंग धड़ंग अवस्था में भौंचक बुत बने मेरे नग्न शरीर में चंडी का रूप देख रहे थे। वे सोच रहे थे कि क्या यही वह नादान कमसिन नाजुक बाला है जिसे उन्होंने अपने काम वासना के जाल में फंसाकर मनमाने ढंग से अपनी काम क्षुधा तृप्त की और वासना का नंगा तांडव किया?
अब मेरा ध्यान उन नंग भुजंग बूढ़ों की ओर गया जो मुझे अवाक देखे जा रहे थे और मेरी अपनी नग्न स्थिति पर भी। गुंडों पर अपनी खीझ उतार कर मेरा सारा गुस्सा कफूर हो चुका था और मैं उनकी ओर मुखातिब हो कर बोल पड़ी, "अब क्या? चलो फटाफट कपड़े पहनो और यहां से खिसको, शाम हो गई है, पार्क बन्द होने वाला है" कहते हुए मैं झटपट अपने कपड़े पहनी और गुन्डों को वहीं कराहते छोड़ मेरे बूढ़े चोदुओं के साथ पार्क से बाहर निकली। वे बूढ़े समझ चुके थे कि हमारे बीच जो रासलीला शुरू से अबतक हुई उसमें उनकी कामलोलुपता के साथ साथ परिस्थिति, अवसर और मेरी रजामंदी, सब की भागीदारी बराबर है। अगर मैं रजामंद न होती तो मेरे साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता। वह पल जब मैं कमजोर पड़ी, एक ऐसा पल था जब मैं वासना की आग में तप रही थी, जिस उपयुक्त मौके की ताक में बड़े दादाजी थे, उस पल वहां कोई भी ऐरा गैरा बड़ी आसानी से मेरा कौमार्य तार तार कर सकता था, जैसा कि सौभाग्य से बड़े दादाजी ने किया। यह वही एक कमजोर पल था जब मेरे कामातुर शरीर की मांग के आगे मेरा दिमाग कमजोर पड़ा। मगर उस पल को धन्यवाद जिसने मुझे नारीत्व का सुखद अहसास कराया और संभोग के चरम सुख से परीचित कराया जिसके लिए मैं बड़े दादाजी का आजीवन आभारी रहूंगी।
पार्क से बाहर ज्यों ही हम निकले, टैक्सी ड्राइवर बड़ी बेसब्री से इंतजार करता मिला। "बहुत देर कर दी आप लोगों ने?" उसने पूछा। "हां थोड़ी देर हो गई, अब चलो वापस घर" मैं बोली। अभी की घटना से सभी का मूड खराब हो चुका था मगर कई सारी चीजें स्पष्ट हो गयीं थीं। हमारा रिश्ता अब थोड़ा पहले से और अच्छा हो गया था जिसमें हमने एक दूसरे को और अच्छी तरह समझा।
मैं उस वक्त एक और योजना को कार्यरूप देने जा रही थी और वह थी आज की मेरी अधूरी प्यास बुझाने की, वह भी बूढ़े टैक्सी ड्राइवर को "शुक्रिया अदा करने" के रूप में।
घर पहुंचते पहुंचते संध्या 6:30 बज रहा था। मैं ने टैक्सी ड्राइवर को रुकने का इशारा किया और बूढ़े आशिकों को घर छोड़ कर मम्मी को बोली, "मां मैं रीना से मिल कर आती हूं" और धड़कते दिल से वापस टैक्सी में ठीक ड्राईवर के बगल वाली सीट पर बैठी। मैं ने कनखियों से देखा कि बह सिर्फ कुर्ते पजामे में था। उत्तेजना उस ड्राइवर के चेहरे पर साफ परिलक्षित हो रहा था। उत्तेजना के मारे उसका पजामा शनै: शनै: विशाल तंबू में परिणत हो रहा था।
"हां अब चलिए जी।" मैं बोली।
"कहां बिटिया?" ड्राईवर जानबूझ कर अनजान बन रहा था। "धत, अब ये भी मैं बताऊं" मैं ने बड़े मादक अंदाज में ठसके से कहा। "ओह, चलिए मेरे गरीबखाने में, पास ही है।" कहते हुए उसकी आंखें चमकने लगी। 5 मिनटों बाद टैक्सी एक छोटे से पक्के मकान के सामने खड़ी थी। घर की छत एस्बेस्टस की थी। दरवाजा पुराना और जर्जर हो चुका था। ड्राईवर छरहरे जिस्म का करीब 6 फुट 8 इंच लंबा, लंबी सफेद दाढ़ी, लंबोतरा चेहरा और तोते जैसी नाक। आगे बढ़ा और ताला खोलकर दरवाजा ठेला तो चर्र की आवाज से खुला। मुझे अंदर बुलाया और झट से दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। दो छोटे छोटे कमरे, एक किचन और पीछे एक टायलेट, यही था घर, गंदा, बदबूदार, अस्त व्यस्त, एक कमरे में वर्षों पुराना गंदा सा सोफा सेट और दूसरे कमरे में एक सिंगल बेड, जिस पर सलवटों भरी गंदी सी चादर। मुझे उसी बिस्तर पर बैठने को बोला और खुद बगल में बैठ गया और बोला "बिटिया तुमने मेरे गरीबखाने में पधार कर मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है। मैं और तुम जानते हैं कि अब हमारे बीच क्या होने वाला है। दस साल पहले मेरी घरवाली के जन्नतनशीं होने के बाद से आजतक मैं ने किसी जनानी को हाथ नहीं लगाया है। आज इतने सालों बाद तुम जैसी कमसिन नाजुक खूबसूरत अप्सरा इस तरह मेरे पास आएगी यह मेरे ख्वाब में भी नहीं था। अब हमारे बीच जो होने वाला है उसमें अगर तुम्हें कुछ बुरा लगे तो बता देना।"
"हाय राम मुझे बुरा क्यों लगेगा भला। मैं अपनी मर्जी से आई हूं ना, फिर जो होगा उसे तो भुगतना तो होगा ही ना। आप चिंता मत कीजिए, जो मेरे साथ करना है बिंदास कर सकते हैं जी।" मैं ने उसका हौसला बढ़ाया।
फिर क्या था वह बूढ़ा आव देखा ना ताव, पल भर में मुझे मादरजात नंगी कर दिया और खुद भी नंगा हो गया। गजब का लंड था उसका। मुसलमान होने के कारण खतना किया हुआ लंड, सामने बड़ा सा गुलाबी टेनिस बॉल सरीखा बड़ा सा सुपाड़ा, भयानक, करीब करीब ८" लंबा और 2" मोटा, नाग जैसा काला, फनफना रहा था। उसके लंबे छरहरे शरीर पर कोई बाल नही था, केवल लंड के ऊपर हल्के सफेद झांट।
उसने कोई भूमिका नहीं बांधी और सीधे मुद्दे पर आया। पहले मेरी चूचियों को वहशियाना ढंग से दबाता गया और जब मेरी चूत पनिया गई, मेरे पैरों को फैला कर बेड के किनारे तक खींचा और कमर से नीचे का हिस्सा बेड से बाहर करके हवा में उठा दिया और अपना सुपाड़ा मेरी चुदासी दपदपाती पनियायी चिकनी बुर के द्वार पर टिकाया। मेरे सारे शरीर में अपनी चूत पर इतने बड़े सुपाड़े के स्पर्श से दहशत भरी झुरझुरी दौड़ गई। फिर एक करारा ठाप लगा दिया जालिम दढ़ियल नें। इतना बड़ा सुपाड़ा मेरी बुर का मुंह चीरता हुआ अन्दर पैबस्त हो गया। दर्द के मारे मेरी चीख निकल पड़ी। "आ्आ्आह मर गई"।
"चुप कर बुर चोदी, मुझे बहुत तरसाई हो, अब खुद चुदने आई और चिल्ला रही है। टैक्सी की पिछली सीट पर बैठी खूब मज़ा ले रही थी ना बूढ़ों से, मुझे सब पता है, मुझ पर ज़रा सा भी रहम नहीं आया ना, अब चिल्ला मत कुतिया, थोड़ा सब्र कर फिर देख कितना मज़ा देता हूं।" कहता हुआ फिर एक जबरदस्त प्रहार से पूरा का पूरा लौड़ा जड़ तक अन्दर पेल दिया।"उह्ह्ह" "ओह मार डाला रे अम्मा ऊऊऊऊऊऊऊऊ" मैं तड़प उठी। लन्ड का सुपारा मेरे गर्भाशय तक का रास्ता फैलाता हुआ घुसा और गर्भाशय का द्वार पूरा खोल कर अंदर प्रवेश कर गया। उफ्फ वह अहसास, दर्द भी और अपनी संपूर्णता का भी। हंसूं या रोऊं। मैं ने अपने मन को कठोर किया और आगे जो होने वाला था उसे झेलने को तत्पर हो गई। कुछ देर उसी स्थिति में हम दोनों स्थिर रहे फिर आहिस्ते आहिस्ते रहीम चाचा नें लंड बाहर निकाला, ऐसा लग रहा था मानो सुपाड़े से फंसकर मेरा गर्भाशय भी बाहर आ रहा हो। खैर जैसे ही लंड बाहर आया मेरी जान में जान आई। फिर तो मानों क़यामत बरपा दिया उस बुड्ढे नें। दुबारा बेरहमी से लंड घुसेड़ दिया। "आ्आ्आह ओह" करती रही और वह जालिम मेरी चूत का भुर्ता बनाने लगा। पहले धीरे धीरे फिर रफ्तार बढ़ाने लगा, "ओह ओह आह आह" तूफानी गती से चुदती जा रही थी मैं। बेरहम कुटाई। हाय मैं कहां आ फंसी थी। लेकिन धीरे-धीरे मैं अभ्यस्त होती गई और चुदाई के अद्भुत आनंद में डूबती चली गई। "आह ओह आह आह" मेरे मुंह से बाहर निकल रही थी। सिसकारियां ले रही थी। अब मैं मस्ती में बड़बड़ करने लगी,"आह चोद चाचा चोद, आह मजा आ रहा है राजा, आह मेरे राजा, अपनी रानी को चोद ले, आह ओह चोदू चाचा, मुझे अपनी रानी बना ले मेरी चूत के रसिया, मेरे दढ़ियल बलमा," और न जाने क्या क्या। उनका चोदने का अंदाज भी निराला था। एक खास ताल पर चोद रहे थे। चार छोटे ठापों के बाद एक करारा ठाप। फच फच फच फच फच्चाक। 10 मिनट बाद मैं झड़ गई, "आ्आ्आह" फिर ढीली पड़ गई मगर वह तो पूरे जोश और जुनून से चोदे जा रहा था। बीच बीच में मेरी गांड़ में उंगली भी करता जा रहा था जिससे मैं चिहुंक उठती, मैं फिर उत्तेजित होने लगी और हर ठाप का जवाब चूतड़ उछाल उछाल कर देने लगी। अब वह भी बड़बड़ करने लगा,"आह मेरी रानी, ओह मेरी बुर चोदी, लंड रानी, चूतमरानी, ले मेरा लंड ले, लौड़ा खा रंडी कुतिया" और भी गंदी गंदी बात बोल रहा था। फिर 10 मिनटों बाद झड़ने लगी, "आ्आ्आह ईईई" फिर ढीली पड़ गई मगर वह तो मशीनी अंदाज में अंतहीन चुदाई में मशगूल था। कुछ मिनटों में फिर उत्तेजित हो गई। फिर उस तूफानी चुदाई में डूब कर हर पल का लुत्फ उठाने लगी। हम दोनों पसीने से तर-बतर एक दूसरे में समा जाने की होड़ में गुत्थमगुत्था हो कर वासना के सैलाब में बहे जा रहे थे। अब करीब 45 मिनट के बाद जैसे अचानक वह पागल हो गया और भयानक रफ्तार में चोदने लगा और एक मिनट बाद कस के मुझसे चिपक गया और उसके लंड का सुपाड़ा मेरी कोख में समा कर वर्षों से जमे वीर्य के फौवारे से कोख को सींचने लगा और ओह मैं भी उसी समय तीसरी बार छरछरा कर झड़ने लगी। "अह ओह हां हां हम्फ"। चरमोत्कर्ष का अंतहीन स्खलन, अखंड आनंद ओह। स्खलित हो कर हम उसी गंदे बिस्तर पर पूर्ण सँतुष्टी की मुस्कान के साथ निढाल लुढ़क गये। करीब 10 मिनट तक उसी तरह फैली पड़ी रही, मैं जब थोड़ी संभली तो उस दढ़ियल के नंगे जिस्म से लिपट गई और उसके दाढ़ी भरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर पड़ी। उसके लंड की दीवानी हो गई थी। लंड को प्यार से चूम उठी। उस समय रात का 8 बज रहा था। न चाहते हुए भी मुझे घर जाना था। मैं अलसाई सी उठी और अपने कपड़े पहन जाने को तैयार हो गई। वह बूढ़ा भी भारी मन से तैयार हो कर मुझे छोड़ने चल पड़ा। घर पहुंचते ही टैक्सी से उतरने से पहले उसकी गोद में बैठ कर उसे एक प्रगाढ़ आत्मीय चुम्बन दिया और कहा, "आज से मैं आपकी रानी हो गई राजा, आपकी लंड रानी। जब जी चाहे बुला के चोद लीजिएगा।" फिर बाय करते हुए घर की ओर कदम बढ़ाया।
चुदाई का नशा उतरने के बाद मैंने अनायास अपनी चूत को हाथ लगाया था, तो पाया था कि यह सूज कर पावरोटी बन गई थी। मेरी चाल ही परिवर्तित हो गई धी।
खैर जो भी हो, मैं तो इन बूढ़ों के हवस की भूख मिटाते मिटाते खुद भी शनै: शनै: इनके वासनामय गंदे खेल से उपजी अपने अंदर के अदम्य कमापिपाशा और काम सुख की आदी होती जा रही थी।
मैंने घर के अंदर प्रवेश किया, तो देखा सब लोग ड्राइंग हाल में बैठे गप्पें हांक रहे थे। सबकी प्रश्नवाचक निगाहें मुझ पर टिक गईं। "इतनी देर तक क्या कर रही थी?" मम्मी ने पूछा। " कुछ नहीं मां, रीना को बता रही थी कि आज हम कहां कहां घूमे।" मैं बोली।
"ये आजकल की लड़कियां भी ना? पता नहीं है, आजकल इतनी रात तक लड़कियों का अकेले बाहर रहना कितना ख़तरनाक है?" मम्मी बोली।
"अरे मैं अकेली कहां थी। रीना और उसका भाई मुझे छोड़ने आए थे।" बोलती हुई अपने कमरे में चली गई। 10 मिनट बाद फ्रेश होकर फिर मैं भी बैठक में आई।
आज हम कहां कहां घूमे और क्या क्या किया उसी के बारे में बातें होने लगी (टैक्सी में और पार्क में जो कुछ हुआ उसको छोड़ कर)। दूसरे दिन नानाजी और दादाजी लोग वापस गांव लौटने वाले थे, उसके बारे में भी बातें होने लगी।
फिर अचानक नानाजी मुझसे बोले, "बिटिया, अभी तो तुम्हारी छुट्टियां चल रही है, क्यों न कुछ दिनों के लिए हमारे गांव चलती हो। छुट्टियां खत्म होते ही वापस आ जाना" उनकी आंखों में याचना और हवस दोनों परिलक्षित हो रहीं थीं। मैं असमंजस में पड़ गई, हालांकि मेरे पूरे बदन में रोमांचक झुरझुरी सी दौड़ गई, इस कल्पना से कि वहां तो कोई रोकने टोकने वाला होगा नहीं, पूरी आजादी से नानाजी मेरे साथ मनमाने ढंग से वासना का नंगा नाच खेलते हुए निर्विघ्न अपनी हवस मिटाते रहेंगे।
"हां ठीक ही तो कह रहे हैं तेरे नानाजी, पहले कभी गांव तो गयी नहीं, इसी बहाने गांव भी देख लेना।" मम्मी झट से बोल उठी।
"हम भी साथ ही चलेंगे, फिर रांची में दो दिन रुक कर अपने घर हजारीबाग चले जाएंगे।" दादाजी तुरंत बोल उठे, वे भी कहां पीछे रहने वाले थे।
मैं अभी भी द्विधा में थी कि जाऊं कि न जाऊं, "ठीक ही तो है। चली जाओ ना, छुट्टियां बिताने के लिए, एक नया जगह भी है। गौरव, (मेरा छोटा भाई) तुम भी साथ चले जाओ" पापा बोले।
मेरे घरवालों को क्या पता कि मैं उनकी नाक के नीचे इन्हीं हवस के पुजारी बूढ़ों द्वारा नादान कमसिन कली से नुच चुद कर वासना की पुतली, ताकरीबन छिनाल औरत बना दी गई हूं।
"नहीं पापा मैं नहीं जा सकता, स्कूल का प्रोजेक्ट खत्म करना है।" झट से गौरव बोला।
मगर मैं, जो कामवासना के मोहपाश में बंधी इन बूढ़ों की मुंहमांगी गुलाम बन चुकी थी, ने धड़कते दिल से अपनी सहमति दी "ठीक है, ठीक है, जाऊंगी मगर एक हफ्ते के लिए, क्योंकि 10 दिन बाद मेरा कालेज खुल रहा है।" नानाजी का चेहरा खिल उठा।
रात को ही खाना खाने के बाद मैंने बैग वैग में अपना आवश्यक सामान पैक किया और सोने की तैयारी करने लगी क्योंकि तड़के सवेरे हमें निकलना था कि दरवाजे में दस्तक हुई। मैं झुंझला उठी, "अब कौन आ मरा"। रहीम चाचा की खौफनाक चुदाई से वैसे ही बेहाल, सारा बदन टूट रहा था। रात के करीब 10:30 बज रहे थे। सब अपने कमरों में घुस चुके थे। मैं ने दरवाजा खोला तो देखा दादाजी दरवाजे पर खड़े थे।
"अब क्या?" मैं बोली।
चुप रहने का इशारा करते हुए मेरी बांह पकड़ कर उस कमरे की ओर बढ़े जिसमें तीनों बूढ़े ठहरे हुए थे। मैं ने हल्का विरोध किया मगर फिर उनके साथ खिंची उनके कमरे की ओर चली। ज्यों ही मैं ने कमरे में कदम रखा, दादाजी ने फौरन दरवाजा बंद कर दिया। कमरे में नाईट बल्ब की मद्धिम रोशनी में मैंने देखा कि नानाजी और बड़े दादाजी सिर्फ लुंगी पहने बेसब्री से नीचे फर्श पर बिछे बिस्तर पर हमारा इंतजार कर रहे थे।